यदि आपके दिए गए धन का उपयोग कोई व्यसनों या पाप कार्य में करता है तो आप भी उस पाप कार्य में भागीदार बन जाते हें , इसके विपरीत आपके दिए गए धन का उपयोग यदि उत्कृष्टतम ( best ) काम में होता है तो आपको सर्वोतम ( the best ) पुन्य लाभ होता है .
Parmatm Prakash Bharill: कोई यह न समझे क़ि दान देने से हमेशा ही मात्र पुन्य...: ----------------------------ऐसा तो है नहीं क़ि हमारे पास उपलब्ध पैसा हमें अखर रहा है , परेशान कर रहा है , रखने की जगह नहीं है और संभालने ...
मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
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