Saturday, August 11, 2012

मुझे अपने पोस्ट -" "आत्म कल्याण विशुद्ध व्यक्तिगत मामला है---------------------" पर निम्लिखित टिप्पणियाँ मिलीं हें , आप सभी की जानकारी के लिए वे सब और मेरा जबाब प्रस्तुत है , आशा है उपयोगी साबित होगा -


मुझे अपने पोस्ट -"
"आत्म कल्याण विशुद्ध व्यक्तिगत मामला है---------------------" पर निम्लिखित टिप्पणियाँ मिलीं हें , आप सभी की जानकारी के लिए वे सब और मेरा जबाब प्रस्तुत है , आशा है उपयोगी साबित होगा -

  • Anekant Kumar Jain आत्म कल्याण निःसंदेह विशुद्ध व्यक्तिगत मामला है किन्तु जीवन सामाजिक भी होता है ,क्रिया -कांड ,धार्मिक परम्पराएं , उपासना पद्धति और पूजा - अर्चना की विधि आदि भी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं हैं ,पूरी एतिहासिक परंपरा यदि विकृति को प्राप्त होती है तो एक सच्चे गृहस्थ का कुछ कर्त्तव्य भी है कि सही विशुद्ध परम्पराओ की व्याख्या और समझ पैदा करे.ये नहीं हो सकता कि हम सारे दिन अपनी दुकान व्यापार की व्यवस्था सुधारने में तो पूरा तन मन धन लगाएं किन्तु जब धर्म मंदिर ,समाज ,संस्कृति,इतिहास ,पुरातत्व -तीर्थ आदि के मूल स्वरुप की सुरक्षा का प्रश्न आये तो आत्म कल्याण के बहाने अपने कर्तव्यों से मुख मोड लें.ये तो स्वार्थ हुआ.जो सब कुछ छोड़ कर ऐसी बातें करे उसे ये दर्शन शोभा देता है .सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है .
    2 hours ago ·  · 1
  • C.l. Bagra bilkul sahi kaha dr anekant. we fully agree.
    14 minutes ago · 
  • Parmatm Prakash Bharill अनेकांतजी ! आपके विचार अति उत्तम हें और आपने कुछ बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाये हें जिनकी सही परिपेक्ष्य (reference) में बिषद ( detailed ) व्याख्या अपेक्षित है . यह मेरा प्रिय बिषय भी है , समय मिलने पर इस बिषय पर विस्तार से लिखूंगा .
    मैं ये जो सब कुछ लिखता हूँ यह आप जैसे ही प्रबुद्ध पाठकों ( मैं पाठकों को बतलाना चाहता हूँ क़ि आप स्वयं एक प्रबुद्ध विद्वान भी हें ) को लक्ष्य में रखकर लिखता हूँ , आपने इस पर ध्यान दिया तो मेरा लेखन सफल हुआ , आपने टिप्पणी की तो मुझे और विस्तार से लिखने की प्रेरणा मिली है .
    यूं तो मैं इतना कुछ लिखता हूँ और लोग बस चुपचाप पढ़ लेते हें , पढ़कर चुप रह जाते हें , समझ ही नहीं आता है क़ि मैं किसी जीवंत समाज के सामने कुछ कह रहा हूँ या मुर्दों के टीले पर बैठा हूँ -----------------. ऐसा लगता है क़ि या तो सभी लोगों को सब कुछ समझ भी आ जाता है और पसंद भी ,एवं सभी मुझसे सहमत होते हें और या हो सकता है क़ि किसी को कुछ भी समझ में नहीं आता हो या वे मुझसे विल्कुल ही सहमत न हों ?
    बाजार का यह नियम है क़ि वे product बाजार में आते हें जिन्हें लोग पसंद करते हें , इसलिए यदि हम चाहते हें क़ि हमारी पसंद के product बाजार में आयें , तो हमें अपनी पसंद ( और नापसंद भी ) मुखर होकर स्पष्ट तौर पर व्यक्त करनी चाहिए .
    यदि एक दिन आलू-प्याज या बिजली -पानी न मिलें तो हम बौखला जाते हें , कितनी चिल्ल-पों मचाते हें पर यह सब मिले न मिले किसी को कोई फर्क ही नहीं पढता है ?
    ठीक भी तो है , कभी किसी ने हीरे जवाहरातों के न मिलने की या महंगे होने की तो शिकायत की नहीं , उनके लिए तो आन्दोलन किया नहीं .

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