प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार उसकी स्थापित छवि के दायरे में रहता है और जब तक ऐसा होता है जीवन सामान्य ढंग से चलता रहता है .
यदि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व और रीति-नीति या स्वभाव में कोई परिवर्तन होता है और वह परिवर्तन एक सामान्य, स्वाभाविक गति से आकार लेता दिखाई देता है तब उससे सम्बंधित लोग उसे महसूस करते हें , उसका स्वागत या प्रतिरोध करते हें और उसके अनुरूप अपने आप को अडजस्ट कर लेते हें .
यदि ऐसा क
यदि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व और रीति-नीति या स्वभाव में कोई परिवर्तन होता है और वह परिवर्तन एक सामान्य, स्वाभाविक गति से आकार लेता दिखाई देता है तब उससे सम्बंधित लोग उसे महसूस करते हें , उसका स्वागत या प्रतिरोध करते हें और उसके अनुरूप अपने आप को अडजस्ट कर लेते हें .
यदि ऐसा क
ोई भी परिवर्तन बहुत तेजी से होता है तब सम्बन्धित लोग चकित रह जाते हें और कभी-कभी अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करते हें .
सामान्यत: हर व्यक्ति का व्यवहार एक दायरे में सीमित रहता है . जिस व्यक्ति के स्वभाव का दायरा बड़ा होता है उसके व्यवहार में देश , काल और वर्तमान परिस्थिति के अनरूप बहुत बड़ा फर्क दिखाई देता है पर जिनका दायरा सीमित होता है उनका व्यवहार भी हर हाल में मामूली से परिवर्तन के साथ लगभग स्थिर रहता है , ऐसे लोग ज्यादा भरोसेमंद होते हें और स्वभाव से गंभीर होते हें .
हालांकि प्रत्येक व्यक्ति की रीति-नीति और तदनुरूप जीवन शैली बहुत कुछ उसके मूलभूत स्वभाव से निर्धारित होती है पर उसमें उसकी शिक्षा-दीक्षा और वैचारिक क्षमता का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है .
मेरा मानना है कि प्राकृतिक स्वभाव के अनुरूप तो सब की रीति-नीति मात्र स्वार्थपरक और सुविधा भोगी ही हो सकती है जिसमें सभी तरह की हीन वृत्तियों का समावेश बहुतायत के साथ हो सकता है ,पर व्यक्ति को इससे संचालित नहीं होना चाहिए .व्यक्ति को अपने मष्तिष्क से संचालित होना चाहिए और तदनुरूप सामाजिक न्याय से युक्त नीति और जीवन शैली बनानी चाहिए .
सामान्यत: हर व्यक्ति का व्यवहार एक दायरे में सीमित रहता है . जिस व्यक्ति के स्वभाव का दायरा बड़ा होता है उसके व्यवहार में देश , काल और वर्तमान परिस्थिति के अनरूप बहुत बड़ा फर्क दिखाई देता है पर जिनका दायरा सीमित होता है उनका व्यवहार भी हर हाल में मामूली से परिवर्तन के साथ लगभग स्थिर रहता है , ऐसे लोग ज्यादा भरोसेमंद होते हें और स्वभाव से गंभीर होते हें .
हालांकि प्रत्येक व्यक्ति की रीति-नीति और तदनुरूप जीवन शैली बहुत कुछ उसके मूलभूत स्वभाव से निर्धारित होती है पर उसमें उसकी शिक्षा-दीक्षा और वैचारिक क्षमता का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है .
मेरा मानना है कि प्राकृतिक स्वभाव के अनुरूप तो सब की रीति-नीति मात्र स्वार्थपरक और सुविधा भोगी ही हो सकती है जिसमें सभी तरह की हीन वृत्तियों का समावेश बहुतायत के साथ हो सकता है ,पर व्यक्ति को इससे संचालित नहीं होना चाहिए .व्यक्ति को अपने मष्तिष्क से संचालित होना चाहिए और तदनुरूप सामाजिक न्याय से युक्त नीति और जीवन शैली बनानी चाहिए .
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