Sunday, March 3, 2013

अब ज्यों-ज्यों तू मुक्त होता जा रहा है , मैं भी तो मुक्त होता जा रहा हूँ .

  • जेनरेशन गेप एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है , पुरानी पीढी को नई पीढी के सामने यह स्थापित कर पाना बड़ा कठिन होता है कि हालांकि आपकी बुद्धीमत्ता में कोई संदेह नहीं है पर फिर भी अनुभव की कमी सही निर्णय लेने के मार्ग में आड़े आती ही है और वह अनुभव बुजुर्गों के पास है , जो हमें सही निर्णय लेने में मदद कर सकते हें .
    जिस दिन नई पीढी यह समझ पाती है कि उनकी पूर्व पीढी उनके लिए asset है liavility नहीं उस दिन तक वह स्वयं पीढ़ियों का एक पायदान चढ़ चुकी होती है . अनुभव की कीमत सिर्फ अनुभवी ही पहिचान सकता है .
    नई और पुरानी पीढी के बीच रिश्तों की असलियत बयान करती एक चर्चा .
  • ना ! ना !! ना !!!
मुझे यह शिकायत कतई नहीं कि " तुमने मुझसे पूँछा क्यों नहीं , तुम कुछ भी करने से पहिले मुझसे कुछ पूंछते क्यों नहीं हो " .
भला हो भी क्यों ?
मैं भी तो यही चाहता हूँ कि तुम स्वतंत्रपने अपने आप में सम्पूर्ण बनो , तुममें स्वयं अपने निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो .
हकीकत तो उल्टी है और वही उचित है , वैसा ही होना भी चाहिए कि , जैसे - जैसे तुम अपने निर्णय स्वयं लेना प्रारम्भ कर रहे हो , मैं हल्का होता जा रहा हूँ , राहत महसूस कर रहा हूँ , मुझे लगने लगा है की मैंने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है , अब मैं भी आजाद हूँ .
अरे भाई ! कल तक यदि तू इस बंधन में बंधा था कि कुछ भी करने से पहिले तुझे मुझे पूंछना पड़ता था तो मैं भी तो तुझे सलाह या आदेश या देने के कर्तव्य से बंधा था , अब ज्यों-ज्यों तू मुक्त होता जा रहा है , मैं भी तो मुक्त होता जा रहा हूँ .
लोगों को यह भ्रम है कि किसी को आदेश देने का अधिकार आपकी संपत्ति है , संपदा है asset है . सचमुच तो यह उत्तरदायित्व है , liability है .
मुझे इस बात का भय या परवाह भी कतई नहीं है कि तुम जो निर्णय ले रहे हो वह सही है है या गलत है क्योंकि मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि वह सही ही होगा , क्योंकि आखिर तुम्हारा सोच भी तो उसी दायरे में विकसित हुआ है , जो सीख मैं तुम्हें आज तक देता आया हूँ , तब तुम्हारे निष्कर्ष भी तो मेरे सामान ही होंगे न ?

यदि तुम्हारा सोच , तुम्हारे निष्कर्ष और तुम्हारे निर्णय मुझे मेल नहीं भी खाते हें तब भी यह अफ़सोस का नहीं प्रसन्नता का ही बिषय है ,क्योंकि यदि तुम उनमें कुछ परिवर्तन कर भी रहे हो तो तुम उन नीतियों को तो बदलोगे नहीं , जो सफल हें , सही हें , प्रगतिशील हें . स्वाभाविक है कि तुम सिर्फ उन्हीं में तो परिवर्तन करोगे जो नीतिया असफल रही हें , जिनमें कोई कमियाँ हें , जिनमें सुधार का अवकाश है .
तो यह तो होना ही चाहिए , क्योंकि यह तो तय है की कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं है , हरेक की कुछ सीमायें हें , हरेक का सोच एक दायरे में सीमित होता है , और यही बात मेरे अपने बारे में भी उतनी ही सही है . अब यदि तुम भी मेरे ही दायरे में सीमित रहे , मेरी ही सीमाओं से बंधे रहे , मेरी भूलों , कमजोरियों और आधे-अधूरेपन को ही ढ़ोते रहे तो प्रगति कैसे होगी , हम दो और कदम आगे कैसे बढ़ेंगे ?
यह तो तय है कि तुम मेरी सही नीतियों और कार्यप्रणाली को तो बदलोगे नहीं क्योंकि यही तुम्हारे हित में है .
आखिर सबाल सिर्फ मेरे सही या गलत होने या साबित होने का ही तो नहीं है न ? इसमें तुम्हारे हित - अहित भी तो निहित हें न ?
यदि भूल या अज्ञान वश तुम कोई गलत निर्णय भी लेते हो या मेरी सही नीतियों को भी बदल डालते हो तब भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं है , तब भी मुझे तुम्हें ऐसा करने से रोकने में कोई रूचि नहीं है , क्योंकि जब तुम सब कुछ जानबूझकर ऐसा कर ही रहे हो तो मैं तुम्हें रोक भी कैसे पाउँगा ?
और फिर मैं रोकूँ भी क्यों ? आखिर यह तुम्हारी जिन्दगी तुम्हारी है और तुम्हें अपने ढंग से जीने का अवसर तो मिलना ही चाहिए न ?
एक बात और !
यह तो तय है कि वस्तुस्वरूप किसी के लिए बदलता नहीं और किसी की भूल या गल्ती को माफ़ भी नहीं करता है . यदि कोई गलती करेगा तो उसे उसकी कीमत चुकानी ही होगी , वह चाहे मैं होऊं या तुम . और इसलिए यह तय है कि हम गल्ती सिर्फ एक बार करेंगे , क्योंकि बुद्धिमान और समझदार लोग गलतियां दोहराते नहीं हें . एक बार की गई गल्ती का परिणाम आने पर हमें उसका अहसास हो ही जाएगा और हम उसे सुधार ही लेंगे .
एक तथ्य यह भी तो है कि हम सब इतने भाग्यशाली कहाँ कि सब कुछ औरों के अनुभव से सीखलें , हालांकि बहुत कुछ तो हम सीख लेते हें और लाभान्वित भी होते हें पर बहुत स्थानों पर हम चूक ही जाते हें और तब ठोकर खाकर अपने ही अनुभव से सीखते हें .
यदि अनादिकाल से आजतक सभी लोग दूसरों द्वारा की गई गलतियों से सीख लेकर उन्हें सुधार लेते और अनुभव की उसी परम्परा को आगे बढाते आते तो आज तक संसार में गल्तियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता .
तुम्हारे पास मेरी शिक्षाएं तो हें ही और जहां तुम मुझसे सहमत नहीं हो वहां तुम्हारे पास तुम्हारे अपने विचार भी हें , अब जीवन की वास्तविकताएं फैसला करेंगीं कि कौन सही है और कौन गलत .
हाँ एक बात याद रखना ! इन बातों को कभी जिद का बिषय मत बनाना , हमारा निर्णय वस्तुनिष्ठ होना चाहिए व्यक्तिनिष्ठ नहीं .
एक बात और ! यह मसला सिर्फ तुम्हारे और मेरे ही बीच का नहीं है , व्यक्तियों की ही तरह विचारों की भी एक सन्तति होती है , विरासत होती है जो की पीढी दर पीढी ट्रांसफर होती है पीढियां चाहे पिता - पुत्र - पौत्र की हो या गुरु - शिष्य की . इस कड़ी में यदि कोई एक व्यक्ति गल्ती करेगा तो उस गलती की परम्परा ही चल पड़ेगी और यह कोई साधारण गल्ती नहीं वरन प्राणी मात्र , मानव मात्र , जगत , देश , समाज , परिवार और स्वयं अपने प्रति एक गंभीर अपराध होगा .
क्या तुम या कोई भी ऐसा करना चाहेगा ?
मैं मानता हूँ , कभी नहीं .
एक बात याद रखना ! अपनी विरासत तुम्हें सोंप देने साथ ही तुम्हारे प्रति मेरे कर्तव्यों की लगभग इतिश्री हो जाती है और मेरा जीवन भी जो शेप ले सकता था ले चुका है , मैं जो बन सकता था बन चुका हूँ . मैंने जो सही या गलत समझा , जाना - माना और किया उसका परिणाम सामने है , पर तुम्हारी पारी अभी बाकी है , तुम्हें अभी खेलना है , तुहारी जीत या हार का फैसला अभी भी बाकी है . मेरे और तुम्हारे बीच की मर्यादाएं रेखांकित हो चुकी हें पर अभी तुम्हारे और तुम्हारे बालकों के बीच अभी यह होना शेष है और इसलिए तुम्हारे निष्कर्षों का सही और संतुलित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है .
विमान के परिचालन में दो लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है , एक पायलट की और दूसरी कंट्रोल टावर की , राय दोनों की ही महत्वपूर्ण है , इसमें कौन बड़ा कौन छोटा यह महत्वपूर्ण नहीं है पर यदि निर्णय के प्रभावों पर द्रष्टिपात किया जाबे तो हम पायेंगे कि सही निर्णय ही लिया जाबे यह पायलट के हित में अधिक है क्योंकि वह स्वयं विमान में सबार है और किसी दुर्घटना की स्थिति में जिन्दगी उसकी दाव पर लगी है . कंट्रोल टाबर बाले का क्या लुटने वाला है ? इसलिए पायलट को चाहिए कि कंट्रोल टाबर के निर्देशों को ध्यान से सुने और सतर्कता पूर्वक उनका पालन भी करे .

एक बात याद रखना अब बाजी पलट रही है , अब तुम्हें भी खेल की नीति बदलनी होगी .
मेरी शिक्षाओं और संस्कारों ने तुम्हारे जिस सलोने , निर्विकार व्यक्तित्व का निर्माण किया है उनके रहते तुम्हारा भविष्य भी उज्जवल है और मेरा भविष्य भी सुरक्षित है और अब वही काम तुम्हें करना है अपने बालकों का स्वर्णिम भविष्य और तुम्हारा अपना भविष्य सुरक्षित करने का काम अब तुम्हें करना है , मैं तो अब मात्र प्रेक्षक की भूमिका में आ गया हूँ , मात्र ज्ञाता - द्रष्टा .
तुम अपने बचपन को अभी तक भूले नहीं होवोगे , किस तरह तुमने और मैंने मिलकर उसे जिया है , अभी - अभी तो तुमने उसे पीछे छोड़ा है , अब इस यौवन के विमान पर सबार होकर भी जमीनी हकीकतों से जुड़े रहने का प्रयास करना , प्रौढावस्था और वृद्धावस्था आने से पहिले ही उसे जानने , समझने और जीने की तैयारी कर लेने में ही समझदारी है . तुम्हें अपने ये व्र्द्धावस्था के दिन किस तरह व्यतीत करने हें उनका माडल अपनी सन्तति के समक्ष प्रस्तुत करने का स्वर्ण अवसर आज तुम्हारे पास है .
मेरी समस्त शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हें .

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