क्या हम स्वच्छन्द होने के लिए स्वतंत्र हें ?
दुनिया में स्वतंत्रता के मायने क्या हें ?
हम एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हें .
सत्य तो है पर अधूरा .
हम स्वतंत्र हें पर उस स्वतंत्रता की परिभाषा अलग है .
वह परिभाषा हमारी नहीं संविधान की परिभाषा है , समाज की परिभाषा है , परम्परा की परिभाषा है .
उक्त परिभाषाओं के अंतर्गत हम अनेकों बंधनों , बंदिशों , कर्तव्यों और देनदारियों का पालन करने की बाध्यता के साथ स्वतंत्र हें .
एक उदाहरण लें -
- हम कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हें -
शर्तें -
- यह स्वतंत्रता अपने देश के अन्दर ही है
- अनेक स्थलों पर जाना मना है .
- हर स्थान पर हर समय नहीं जाया जा सकता है , सिर्फ निर्धारित समय पर जा सकते हें .
- हो न हो हमें सिर्फ निर्धारित वस्त्र पहिन कर ही जाना पड़े .
- कई स्थलों पर जाने के लिए कई लोगों की अनुमति लेना आवशयक है .
- हम जहां जाते हें , वहां पर वहां के नियमों और परम्पराओं का पालन करना आवश्यक है .
- कहीं जाने के लिए हमें उसका निर्धारित शुल्क भी देना पड़ता है .
- कहीं जाने पर हमारी प्रतिपल की गतिविधि पर नजर रखी जाती है .
- वहां जाकर भी हम कुछ भी नहीं कर सकते ,सिर्फ वही कर सकते हें जो करने की अनुमति प्रदान की गई है .
- हमें अपनी तलाशी भी देनी पड सकती है ..
- वहां से एक निर्धारित समय पर हमें बापिस भी लौटना पड़ता है .
इस प्रकार हम देखते हें कि उक्त अनेकों बन्धनों के साथ हम कहीं भी जाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हें .
हमारी यह स्वतंत्रता मात्र तब तक ही कायम भी रह पायेगी जब हम उक्त नियमों और मर्यादाओं का पालन करें , यदि हम उक्त नियमों या मर्यादाओं का उलंघन करते हें तो हमारी वहां आने-जाने की स्वतंत्रता तो छिन ही जायेगी साथ ही हमारे ऊपर अन्य अनेकों बंधन और लाद दिए जायेंगे , जैसे - अर्थ दंड , मुकदमा , जेल आदि .
इस प्रकार हम देखते हें कि हमारी स्वतंत्रता कितनी अक्षम ,कमजोर , मजबूर और लूली-लंगडी है .
मैं कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि यह सब गलत है , क्योंकि उक्त कथित स्वतंत्रता मात्र हमारे ही तो बपौती नहीं है न ?
यहाँ हमारी ही तरह स्वतंत्र अन्य अनेकों लोग भी तो रहते हें तब उनकी स्वतंत्रता पर आंच न आये इसके लिए यह जरूरी है कि हमारे ऊपर ऐसी बंदिशें हों जिनसे औरों की स्वतंत्रता खंडित न हो .
हमें अपने किसी भी आचरण ( कदम ) से पहिले यह सुनिश्चित कर लेना जरूरी है कि हमारे इस आचरण से कहीं किसी के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है न ?
यदि हम ऐसा नहीं करते हें तो समझ लीजिये की हमारी यह सीमित , सशर्त स्वतंत्रता भी खतरे में ही है .
दुनिया में स्वतंत्रता के मायने क्या हें ?
हम एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हें .
सत्य तो है पर अधूरा .
हम स्वतंत्र हें पर उस स्वतंत्रता की परिभाषा अलग है .
वह परिभाषा हमारी नहीं संविधान की परिभाषा है , समाज की परिभाषा है , परम्परा की परिभाषा है .
उक्त परिभाषाओं के अंतर्गत हम अनेकों बंधनों , बंदिशों , कर्तव्यों और देनदारियों का पालन करने की बाध्यता के साथ स्वतंत्र हें .
एक उदाहरण लें -
- हम कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हें -
शर्तें -
- यह स्वतंत्रता अपने देश के अन्दर ही है
- अनेक स्थलों पर जाना मना है .
- हर स्थान पर हर समय नहीं जाया जा सकता है , सिर्फ निर्धारित समय पर जा सकते हें .
- हो न हो हमें सिर्फ निर्धारित वस्त्र पहिन कर ही जाना पड़े .
- कई स्थलों पर जाने के लिए कई लोगों की अनुमति लेना आवशयक है .
- हम जहां जाते हें , वहां पर वहां के नियमों और परम्पराओं का पालन करना आवश्यक है .
- कहीं जाने के लिए हमें उसका निर्धारित शुल्क भी देना पड़ता है .
- कहीं जाने पर हमारी प्रतिपल की गतिविधि पर नजर रखी जाती है .
- वहां जाकर भी हम कुछ भी नहीं कर सकते ,सिर्फ वही कर सकते हें जो करने की अनुमति प्रदान की गई है .
- हमें अपनी तलाशी भी देनी पड सकती है ..
- वहां से एक निर्धारित समय पर हमें बापिस भी लौटना पड़ता है .
इस प्रकार हम देखते हें कि उक्त अनेकों बन्धनों के साथ हम कहीं भी जाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हें .
हमारी यह स्वतंत्रता मात्र तब तक ही कायम भी रह पायेगी जब हम उक्त नियमों और मर्यादाओं का पालन करें , यदि हम उक्त नियमों या मर्यादाओं का उलंघन करते हें तो हमारी वहां आने-जाने की स्वतंत्रता तो छिन ही जायेगी साथ ही हमारे ऊपर अन्य अनेकों बंधन और लाद दिए जायेंगे , जैसे - अर्थ दंड , मुकदमा , जेल आदि .
इस प्रकार हम देखते हें कि हमारी स्वतंत्रता कितनी अक्षम ,कमजोर , मजबूर और लूली-लंगडी है .
मैं कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि यह सब गलत है , क्योंकि उक्त कथित स्वतंत्रता मात्र हमारे ही तो बपौती नहीं है न ?
यहाँ हमारी ही तरह स्वतंत्र अन्य अनेकों लोग भी तो रहते हें तब उनकी स्वतंत्रता पर आंच न आये इसके लिए यह जरूरी है कि हमारे ऊपर ऐसी बंदिशें हों जिनसे औरों की स्वतंत्रता खंडित न हो .
हमें अपने किसी भी आचरण ( कदम ) से पहिले यह सुनिश्चित कर लेना जरूरी है कि हमारे इस आचरण से कहीं किसी के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है न ?
यदि हम ऐसा नहीं करते हें तो समझ लीजिये की हमारी यह सीमित , सशर्त स्वतंत्रता भी खतरे में ही है .
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