Wednesday, April 10, 2013

अरे ओ भोले ! क्यों व्यर्थ ही अपने आपको दंड का पात्र बनाता है ? इस बदले की आग को इसी पल शांत करदे ! यह तो उल्टा ही बार करती है .

जब हमें खुजली चलती है तो बस निष्ठुरता पूर्वक खुजलाने में पिल पड़ते हें , तब होश ही नहीं रहता है कि इसका परिणाम क्या होगा ?गहरा घाव हो जाएगा जो जाने कब तक पेलेगा , कष्ट देगा . इस मुई खुजली का क्या है ,कुछ पलों में स्वयं शांत हो जाती .पर हम इस एक पल की खुजली मिटाने के लिए लम्बे समय के लिए गहरे घाव कर लेते हें , यह हमारे अविवेक की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है ?
ऐसा ही कुछ जीवन भर हमारे व्यवहार में होता है , हम अपनी एक पल की खुन्नस मिटाने के लिए हर एक से जीवन भर की शत्रुता पाल लेते हें और फिर अनंत काल तक उसका अभिशाप भुगतते रहते हें , हम इस तथ्य को समझकर इस अभिशाप से मुक्त भी हो सकते हें , कैसे ?
आइये पढ़ें !
अरे ओ भोले !
क्यों व्यर्थ ही अपने आपको दंड का पात्र बनाता है ?
इस बदले की आग को इसी पल शांत करदे ! यह तो उल्टा ही बार करती है .
तू सोचता है कि "मौक़ा मिलने दो , मजा चखाउँगा "
अरे ! उसे तो पता नहीं तू कब मजा चाखायेगा , पर तू स्वयं तो प्रतिपल ही द्वेष की भट्टी में जला जारहा है ,उसका क्या ?
ज़रा विचार तो कर !
उसके मात्र एक पल के उस दुर्व्यवहार ने तुझे कितना आंदोलित और परेशान कर दिया है , अन्दर तक हिला दिया है . झकझोर डाला है कि तू अपने स्वभाव की सारी मिठास ही खो बैठा है , शांति ही खो बैठा है , तू कषाय की भट्टी बन गया है .
अब तू उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप , उसका बदला लेने के लिए प्रतिपल उसकी उपेक्षा , उसके साथ दुर्व्यवहार कर रहा है .
यदि एक पल के दुर्व्यवहार का फल ऐसा है तो तेरे इस निरंतर के दुर्व्यवहार का फल क्या होगा ? क्या तू कल्पना भी कर सकता है ?
क्या तू वर्दाश्त भी कर पायेगा ?
उसने तो तुझसे एक पल के लिए दुर्व्यवहार किया था पर अब तू तो अपने आप को अनंतकाल के लिए उस दुर्व्यवहार का पात्र बना रहा है .
तेरा शत्रु कौन ?
वह या तू स्वयं ?
अरे ! अगर तू कषाय का पुंज है तो यहाँ कम कौन है ? सभी तो तेरी ही बिरादरी के हें , सभी तो कषायों के चक्रवर्ती हें .
माना कि कल जब उसने तुझसे दुर्व्यवहार किया तब तेरा कोई दोष न था , तू इस व्यवहार का पात्र न था ,पर आज तो तू स्वयं अपने आप को दंड का भागी (पात्र) बना रहा है .
जब बिना दोष के तुझे दंड मिला ( तुझे ऐसा लगता है ) तो अब तो तू दोषी है , अब तुझे दंड क्यों न मिलेगा ?
क्यों तू स्वयं अपने हाथों , अपने कपाल पर , स्वयं अपने लिए दुर्भाग्य का लेख लिख रहा है ?
कल जब इसका प्रतिफल आयेगा तब दुनिया से न्याय की भीख मांगेगा , निष्ठुर भगवान् से दया की भीख मांगेगा .
अरे ! जब आज तू स्वयं किसी को और अपने आपको माफ़ नहीं कर रहा है , अपने आपको अपराधी बना रहा है , मेरी इस पुकार को नहीं सुन रहा है तो कैसे आशा करता है कि कल कोई तेरी पुकार सुनेगा ?
यदि तू अपने स्वयं के सुख-शान्ति के लिए कुछ नहीं करना चाहता है तो कोई दूसरे के लिए (तेरे लिए) कुछ भी क्यों करेगा ?
आज भले ही तुझे याद नहीं है , पर यह तो सुनिश्चित है कि आज जो तेरे साथ हो रहा है ( जिस पर तू इतना तिलमिला रहा है ) तेरे इस दुर्भाग्य की इबारत भी स्वयं तूने ही लिखी थी , जब आज तुझसे इतना सा प्रतिफल वर्दाश्त नहीं हो रहा है तो जब कल तुझे अपने आज के इस बैर भाव के व्यवहार का इससे कई गुना कठोर प्रतिफल मिलेगा , तब तेरा क्या होगा ?
अरे अविवेकी ! गैब तू प्रतिपल अपने ही चारों और कांटें बोयेगा , उनका पोषण और संरक्षण करेगा तब तो तुझे जीवन भर उन्हीं काँटों के साथ ही तो रहना होगा , तब तुझे फूल कहाँ मिलेंगे ?
यदि आज कुछ पलों के लिए तेरी चाल चल भी जाती है और तुझे तेरी इन करतूतों का कोई विपरीत फल दिखाई नहीं देता है तो तू गाफिल ( लापरवाह ) मत हो जाना ! प्रतिफल तो आयेगा , आज नहीं तो कल आयगा .
यदि तेरे ह्रदय में उसके प्रति शत्रुता का भाव पल रहा है तो उसके ह्रदय में तेरे लिए भी शत्रुता पनप ही रही होगी , आखिर सभी तो कषायों के चेम्पियन हें , कोई किसी से कम थोड़े ही है .
it is only you ! only you have to decide , how you want to be treated yourself .
जब वह तुम्हारी शांति भंग करके स्वयं शान्ति से नहीं रह पा रहा है तो उसकी शांति भंग करके तुम कैसे शान्ति से रह पाओगे ?
क्या वह तुम्हें भी शांति से बैठने देगा ?
क्यों नहीं तुम आज इस प्रक्रिया को उलट देते हो ?
क्यों नहीं तुम काँटों की जगह फूलों के बाग़ लगाते हो ?
क्यों नहीं तुम उसके और अन्य सभी लोगों के साथ मीठा व्यवहार करके उनकी और से अपने लिए उससे भी मीठा व्यवहार सुनिश्चित कर लेते हो ?
उलटे घड़े के ऊपर तो सभी घड़े उलटे ही रखे जाते हें .
क्यों नहीं आज तुम इन ओंधे घड़ों को उलट डालते हो ?
आज तुम बस एक घड़े को सीधा करदो , फिर् देखो घड़े सीधे रखने की परम्परा ही चल निकलेगी !
अरे भोले ! यदि लिखना ही है तो अपने लिए सौभाग्य का लेख लिखो !
चाहे अपने लिए सौभाग्य लिखो या दुर्भाग्य , चाहे कांटें बोओ या फूल , चाहे मित्रता पालो या शत्रुता , परिश्रम तो एक जैसा ही होता है .
या तो आज सुधर जाओ और अपना मार्ग बदल लो , या फिर अपने दुर्भाग्य के उदय के लिए तैयार हो जाओ !
यह न तो मेरा श्राप है और न ही भावना या चेलेंज , यह तो बस बयाने हकीकत है , कड़बी सच्चाई का बयान है .
मेरे समझाने से क्या होने वाला है , होगा तो वही जो तेरे भाग्य में लिखा होगा .
फिर भी इतना समझ लेना कि यदि आज तुझे मेरी बात रुचती नहीं है , समझ में नहीं आती है , स्वीकार नहीं होती है तो यह निश्चित है कि घोर दुर्भाग्य तेरे द्वार पर दस्तक दे रहा है .


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