बहुतायत लोग वह काम करते हें जिसकी उन्हें आवश्यकता नहीं है , क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि करना क्या चाहिए ?
--पेट के लिए दौड़ने वाला हमें अदना , तुच्छ , कंगाल और संकीर्ण द्रष्टिकोण वाला दिखाई देता है और पेटी के लिए दौड़ने वाला बड़ा आदमी , धनवान और बड़े द्रष्टिकोण बाला महत्वाकांक्षी व्यक्ति दिखाई देता है .
--पेट के लिए दौड़ने वाला हमें अदना , तुच्छ , कंगाल और संकीर्ण द्रष्टिकोण वाला दिखाई देता है और पेटी के लिए दौड़ने वाला बड़ा आदमी , धनवान और बड़े द्रष्टिकोण बाला महत्वाकांक्षी व्यक्ति दिखाई देता है .
पर सचमुच कौन क्या है ?
पहिला जरूरी काम में जुटा हुआ है और दूसरा व्यर्थ के काम में .
पहिले का श्रम सार्थक है दुसरे का निरर्थक .
पहिला सफल हो ही जाएगा और दूसरे के पास सफलता या असफलता या असफलता के कोई पैमाने ही नहीं हें , आखिर बे सफल होंगे कब और कैसे ?
अब आप ही कहिये कौन सही है और कौन गलत ?
समझ नहीं आता ?
बहुत ही सरल सी तो बात है .
देखिये संत लोग क्या करते हें ?
बस वे ही तो सही हें , और उनका जो व्यवहार है बही सही व्यवहार है , वही करने योग्य है .
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