हम एक बार "प्लीज" बोलते हें और मानकर चलते हें कि बस अब तो सामने बाले को अपने सब काम छोड़-छाड़कर हमारी सेवा के लिए प्रस्तुत हो जाना चाहिये , जुट जाना चाहिए .पर क्या हम स्वयं भी स्वयं के लिए ही ऐसा करने को तैयार हें ?
हम सारी दुनिया से सपोर्ट मांगते फिरते हें , फेवर चाहते हें , पर हम स्वयं ही अपने लिए ही यह नहीं करना चाहते हें .
मान लीजिये कि मिर्च मसालेदार भोजन करने से हमें तकलीफ होती है , हमारी तबियत ख़राब होती है पर तब भी हम वह छोड़ना नहीं चाहते हें .
हमें कोई काम करने के लिए एक निश्चित समय दिया जाता है , हम वह समय तो यूं ही लापरवाही से गँवा देते हें और फिर अंतिम क्षण आने पर लोगों के सामने गिडगिडाते और प्लीज - प्लीज करते फिरते हें , क्यों ?
जब आपने स्वयं ही अपने आप को संकट में धकेला है और संकट से बचने के लिए कुछ नहीं किया है तो अब आखिर कोई दूसरा क्यों कुछ करे , वह भी अपने आप को संकट में डालकर ?
ज़रा विचार करें .
इस दुनिया में यदि सभी लोग इमानदारी से मात्र स्वयं की ही मदद करना प्रारम्भ करदें तो किसी को दूसरे की मदद लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी .
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