Friday, April 5, 2013

कोई इस अहंकार में डूबा जा रहा है की मैंने देश , समाज या परिवार के लिए बहुत कुछ किया है तो कोई इस शिकवे से व्यथित और परेशान है कि आपने मेरे लिए कुछ भी नहीं किया है .

अमूमन लोगों को एक दुसरे से यह शिकायत बनी रहती है कि " आखिर आपने मेरे लिए किया ही क्या है ?"
किसने किसके लिए क्या किया है या किसने किसके लिए कुछ भी नहीं किया है .एक बड़ा उलझा हुआ और कठिन समीकरण है यह .
दुनिया का कोई भी गणितज्ञ इस समीकरण को कभी भी हल नहीं कर पायेगा .

 
न तो कोई यह गिला - शिकवा पाले , न शिकायत करे और न ही भ्रम में रहे कि -
" आखिर देश , समाज और परिवार ने मेरे लिए किया ही क्या है "
यदि और कुछ नहीं तो आप शांति पूर्वक बैठे हें न , यही आपको उन सबकी देन है , अन्यथा वे आपको इतना डिस्टर्व कर सकते हें कि आपको पल भर भी चैन न मिले .
आपको जाने या अन्जाने कोई कष्ट नहीं पहुंचाया , आपके कामों में दखल नहीं दिया , आपकी गतिविधियों से उन्हें जो भी डिस्टर्व हुआ होगा उसे चुपचाप सहन कर लिया यह सहयोग क्या कम है किसी का ?
 
कोई इस अहंकार में डूबा जा रहा है की मैंने देश , समाज या परिवार के लिए बहुत कुछ किया है तो कोई इस शिकवे से व्यथित और परेशान है कि आपने मेरे लिए कुछ भी नहीं किया है .
सच क्या है ?
सत्य तो यह है कि कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता है , यदि वह कुछ भी करता है तो स्वयं अपने लिए , अपने संतोष और आनंद के लिए .
किसी को दूसरों की सेवा करने में आनंद मिलता है , मा को बच्चे को दूध पिलाने से संतोष मिलता है इसलिए बे दोनों ये काम करते हें , अब यह अलग बात है कि उनके आनंद और संतोष के साथ दूसरों को भी मदद मिल है .
दरअसल तालाब में एक तिनका भी डाला जाए तो इनती लहरें उठतीं हें और वे इतनी दूर तक जातीं हें कि अनंत जंतुओं पर उनका प्रभाव पड़ता है , किसी पर अच्छा किसी पर बुरा . अब जिसने तिनका फेका है उसने तो यह काम अपने प्रयोजन के लिए किया है , इससे या तो उसे कोई आनंद मिला या किसी प्रयोजन की सिद्धी हुई . उसके प्रयोजन की सिद्धी के साथ जिन अन्य अनंत जीवों पर उस क्रिया का अच्छा या बुरा जो भी प्रभाव पडा उसके लिए वे उसका उपकार मानने के लिए या दुश्मनी ठानने के लिए स्वतंत्र हें , पर एक बात तय है की किया किसीने किसी के लिए कुछ भी नहीं है .
किसी के घर एक बच्चा जन्म लेता है .
एक सामान्य सी घटना है .
लीजिये ज़रा हिसाब लगाएं कि इसमें किसने किसके लिए क्या किया है -
- माँ ने बच्चे के लिए क्या किया है ?
जीवन दिया .
स्वयं प्रसव पीड़ा सही , गर्भावस्था बिताई .
क्या माँ ने अपने लिए कुछ नहीं किया ?
क्या उसे मातृत्व का सुख नहीं मिला ?
क्या उसे जननी का खिताब न मिला ?
क्या उसे पति , परिवार और समाज से स्नेह का वरदान न मिला ?
- क्या बच्चे ने माँ के लिए कुछ भी नहीं किया है ?
उसने माँ को मातृत्व का सुख देने के लिए गर्भ और प्रसव की पीड़ा सही .
माँ और बच्चे ने मिलकर किसके लिए क्या किया ?
- परिवार को एक सदस्य प्रदान किया
- देश और समाज को एक नागरिक प्रदान किया .
देश और समाज ने उनके लिए क्या किया ?
जीने के साधन और माहोल प्रदान किया .
एक ड्राइबर एक बस चलाता है
उस ड्राईबर ने किसके लिए क्या किया है ?
बस के अन्दर बैठे हुए लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम किया .
तो क्या जो पैदल चल रहे हें उनके लिए कुछ नहीं किया ?
किया न ? उन्हें सुरक्षित चलने दिया , टक्कर नहीं मारी , यह क्या कम उपकार है ?
तो जो अपने घर बैठे हुए हें उनके लिए भी कुछ किया है ?
हाँ किया है -
उन्हें इस बात से आश्वस्त किया है कि उन्हें जब भी पूना जाना होगा तब यह बस हाजिर है .
तो जो कुछ भी उसने किया है वह सब सिर्फ दूसरों के लिए ही किया है ? अपने लिए कुछ भी नहीं किया है ?
हाँ ! अपने लिए और अपनों ( परिजनों ) के लिए आजीविका का इंतजाम किया है .
बस का वह ड्राईबर तो अपने लिए आजीविका का इंतजाम करने को निकला है , अपने सुख , अपनी सुविधा और अपने संतोष के लिए , अब उसके इस क्रियाकलाप से अनेकों को मदद मिली और अनेकों को पीड़ा भी हुई .
वह इस जॉब में लग गया तो जिस अन्य उम्मीदबार को अवसर नहीं मिला उसे कितनी पीड़ा हुई होगी ?
जिसे कभी पूना जाना ही नहीं है , वह ध्वनी ,प्रदूषण और बढ़ते हुए ट्राफिक को देखकर दुखी हुआ जारहा होगा .
अब आप ही कहिये कि क्या उसने ड्राईबर की यह नौकरी इस तरह किसी को पीड़ा पहुंचाने के लिए की है क्या ?
उसने तो अपने शुकून के लिए यह काम किया है , अब ये खामखाँ दुखी हो रहे हें .
सरकार स्कूल खोलती है , अस्पताल बनाती है तो उसने जनता के लिए क्या किया ?
सब तो स्कूल जाते नहीं , सब तो अस्पताल जाते नहीं , जाना भी नहीं चाहते .
जो गए उनके लिए तो सरकार ने सुविधा प्रदान की ही है पर जो न गए उनके लिए भी यह संतोष की बात है कि जब भी उन्हें जरूरत पड़े तो सरकार की और से शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध है .
ऐसा नहीं है कि जो कभी स्कूल गए ही नहीं या जिन्हें कभी अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पडी , उनके लिए सरकार ने कुछ नहीं किया है .
सुविधा किसके लिए ?
जो लाभ ले उसके लिए .
अब सरकार तो श्मशान और कब्रिस्तान भी बनाती है , तो क्या यह सरकार की अपने नागरिकों के प्रति दुर्भावना है की वह उनके मरने की भावना रखती है ?
नहीं ! यह मरने या मारने की भावना नहीं है , पर यह सब जानते हें कि एक दिन सभी को मरना है तो जिस दिन कोई भी मरे तो उसके लिए सरकार इंतजाम करती है .
तो क्या सरका रने मरने वाले के लिए इंतजाम किया है ?
मरने वाले का क्या ? वह तो गया .
सरकार ने अपने लिए इंतजाम किया है , अपना प्रदूषण रोकने का इंतजाम किया है .



चाहें तो कह लीजिये कि किसान देश के लिए अन्न उगाता है या फिर कहें कि स्वयं अपने लिए , आजीविका के लिए .
सत्य सभी जानते हें .

निष्कर्ष यह है कि जब भी कुछ होता है , जब भी कोई कुछ भी करता है तो सब के ऊपर उसका कोई न कोई प्रभाव पड़ता है , अनुकूल या प्रतिकूल , तात्कालिक या दूरगामी . यह तो वस्तुव्यव्स्था है , इसमें किसी का कोई कर्तृत्व नहीं है .

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