Saturday, May 4, 2013

अरे ! हम सभी तो एक जैसे ही हें ! वही भूंख-प्यास , वही नींद और थकान , वही बोरियत , वही आशा-निराशा , वही दुःख-दर्द , वही गिले-शिकवे , वही अभाव और कंगाली , वही रोग-बीमारी , वही विरह की पीड़ा , वही अनिष्ट संयोगों का दर्द , वही अज्ञान का अन्धकार , वही जानने की तीव्र जिज्ञासा . हीन भावना , उच्चता की भावना , भय , लोभ , इर्ष्या-द्वेष .

जब तू अपने दुखड़े सुनाने बैठता है तो कोई अनोखा या अजूबा काम नहीं करता है , तू नहीं कहे तब भी हम समझते हें , हम ही क्या सब ही जानते-समझते हें , आखिर तो हर घर में ही मिट्टी के चूल्हे हें न ?
सभी तो दिन रात यही सब भोग रहे हें !
और फिर कौन नहीं जानता कि महापाप के उदय में इन सब तकलीफों के अतिरिक्त और हो ही क्या सकता है ?
तू जितना अधिक रोता , चीखता-चिल्लाता है उतना ही अधिक अपने दुर्भाग्यशाली होने की घोषणा करता है , यहाँ तो दुर्भाग्य की होड़ लगी हुई है ,क्या सचमुच तुझे यह मंजूर है ?
अरे ! हम सभी तो एक जैसे ही हें !
वही भूंख-प्यास , वही नींद और थकान , वही बोरियत , वही आशा-निराशा , वही दुःख-दर्द , वही गिले-शिकवे , वही अभाव और कंगाली , वही रोग-बीमारी , वही विरह की पीड़ा , वही अनिष्ट संयोगों का दर्द , वही अज्ञान का अन्धकार , वही जानने की तीव्र जिज्ञासा .
हीन भावना , उच्चता की भावना , भय , लोभ , इर्ष्या-द्वेष .
सब कुछ ही तो सभी में सामान रूप से विद्यमान है .
कौन किससे कम है इन सब मामलों में , सभी तो चक्रवर्ती हें , तू किसके सामने , क्या अपने वैभव (बदनसीबी) का प्रदर्शन करता है ?
अरे नादान ! शान्ति से बैठ !
जो हो रहा है उसका ज्ञाता-द्रष्टा रह .
कर्मों के उदय के साथ उपस्थित हुई पीड़ा कर्मों के नाश के साथ स्वत: समाप्त हो जायेगी .

No comments:

Post a Comment