इस कविता की न तो प्रष्टभूमि का स्पष्टीकरण संभव है और न ही इसके निहितार्थ का ,क्योंकि जो कुछ या जितना कुछ कहा जाएगा अपूर्ण और अपर्याप्त ही रहेगा ; जितनी गहराई में आप जा सकें , इसका अर्थ उतना ही गहरा है .
लीजिये इसकी गहराइयों में खो जाइये -
पूज्य पिताश्री डॉ हुकमचन्द जी भारिल्ल के 79 बें जन्मदिवस २५ मई २०१३ को ( जो उनके शिष्यों द्वारा प्रतिबर्ष संकल्प दिवस के रूप में मनाया जाता है , उनके मार्ग पर चलकर उनके कार्यों को आगे बढाने का संकल्प ) देवलाली में प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर उनकी उस्थिति में विशाल जनसमूह के समक्ष पठित -
नवप्रभात की बाट देखो
रात की बात जाने दो
हम हारे नहीं तब हार कैसी
विजय के गीत गाने दो
आंधियां कितनी चलीं
तूफ़ान भी आये गए
कीर्तिमानों के जुड़े
अध्याय तब भी नित नए
यही क्रम दुहराएंगे
दिखलायेंगे जमाने को
थाम लेंगे हम ध्वजा को
वक्त आने दो
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