आखिर कोई कब विचार करे की उसे विरासत में क्या मिला ?
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
शैशव मैं तो उसे माँ की गोद और ढूढ़ मिला तो बस दुनिया भर की नियामतें मिल गई .
बचपन में घर के आँगन ( चाहे वह फुटपाथ ही क्यों हो ) और पिता की मुस्कान से बड़ी कोई चीज नहीं .
यौवन में तो सबका पुरुषार्थ सबाब पर होता है , उफनता है , वह जो चाहे हासिल कर सकता है उसे किस्से क्या चाह और किसी की क्या परवाह ?
प्रौढावस्था में तो वह यह विचार करने लगता है कि किसको क्या दे दे .
उसे किससे क्या मिला ? मिला न मिला , ऐसा विचार करने का अवसर ही कहाँ है ?
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