Monday, July 15, 2013

उनके दुर्भाग्य की तो हम महिमा ही क्या कहें जो अपने निकटतम और प्रियतम लोगों को ही अपना शत्रु बना लेते हें

उनके दुर्भाग्य की तो हम महिमा ही क्या कहें जो अपने निकटतम और प्रियतम लोगों को ही अपना शत्रु बना लेते हें -
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

उनके दुर्भाग्य की तो हम महिमा ही क्या कहें जो अपने निकटतम और प्रियतम लोगों को ही अपना शत्रु बना लेते हें , उनकी रक्षा ( मदद) तो भगवान् भी नहीं कर सकते हें .
यह दुनिया भले ही अरबों मनुष्यों से भरी पडी है पर यहाँ तेरे अपने कितने हें ?
वे कोई भी क्यों न हों , वे एक - एक ही तो हें .
माता-पिता , भाई-बहिन , पति-पत्नि , पुत्र-पुत्री , मित्र  आदि .
ये सभी एक हें , अनोखे हें , इनका कोई replacement नहीं है , तेरे लिए तो यही पूरी दुनिया है , इनमें से एक को खो देने का मतलब है एक बड़ा भाग खो देना .

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