मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Tuesday, September 3, 2013
Parmatm Prakash Bharill: इसके लिए करना क्या है ? बस जो पैसा व्यर्थ पेट्रोल ...
Parmatm Prakash Bharill: इसके लिए करना क्या है ? बस जो पैसा व्यर्थ पेट्रोल ...: मोइली जी ! ये हिन्दुस्तानी बाँकुरे जो heavy traffic jam से और , पेट्रोल की इतनी मंहगी कीमत से नहीं रुके वे तुम्हारे पेट्रोल कर्फ्यू से कैसे...
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