मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Friday, September 27, 2013
Parmatm Prakash Bharill: अरे यही भोलापन ही तो आपकी सम्पत्ती है और यही यदि आ...
Parmatm Prakash Bharill: अरे यही भोलापन ही तो आपकी सम्पत्ती है और यही यदि आ...: over Ordinance to protect convicted netas from disqualification- ( भ्रष्ट नेताओं को अयोग्यता से बचाने बाले अध्यादेश के बारे में ) राहुल ! त...
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