बुराई और अच्छाई का यह संघर्ष किन्ही दो व्यक्तियों के बीच नहीं , यह हमारे अपने अन्दर की अच्छाइयों और बुराइयों के बीच का संघर्ष है
अच्छे और बुरे , ये कोई दो व्यक्ति नहीं हें ,ये एक ही व्यक्ति के दो रूप हें
हमने रावण को बुराइ का प्रतीक बना दिया क्योंकि हम उसके जीवन के एक बुरे पक्ष और बुरी घटना पर ही अटक गए।
क्या हम सभी के व्यक्तित्व के किसी कोने में रावण छुपा नहीं बैठा है ?
यदि रावण ने जबरदस्ती सीता का हरण करके जघन्यतम कृत्य किया तो अग्निपरीक्षा ने साबित कर ही दिया न कि भूल तो उसी पवित्र सीता माता के प्रति मर्यादा पुरुषोत्तम से भी अनायास हो ही गई न ?
सीता माता को वनवास देकर।
क्या आपको नहीं लगता की जहां एक और माता सीता को हाथ भी न लगाकर , उनकी पवित्रता और सतीत्व का सम्पूर्ण सन्मान करते हुए रावण ने कुछ अर्थों में मर्यादाओं के प्रति सन्मान और प्रतिबद्धता का भी परिचय दिया है ? क्या यह रावण के अन्दर विद्यमान अच्छाई नहीं थी ?
क्या आपको नहीं लगता है कि रावण के व्यक्तित्व में भी कहीं न कहीं राम छुपा बैठा था ?
हम अपने अन्तर्मन को टटोलें , अपने व्यक्तित्व में से रावण को निकाल फेकें और वहां राम की स्थापना करें .
शुभकामनाएं !
अच्छे और बुरे , ये कोई दो व्यक्ति नहीं हें ,ये एक ही व्यक्ति के दो रूप हें
हमने रावण को बुराइ का प्रतीक बना दिया क्योंकि हम उसके जीवन के एक बुरे पक्ष और बुरी घटना पर ही अटक गए।
क्या हम सभी के व्यक्तित्व के किसी कोने में रावण छुपा नहीं बैठा है ?
यदि रावण ने जबरदस्ती सीता का हरण करके जघन्यतम कृत्य किया तो अग्निपरीक्षा ने साबित कर ही दिया न कि भूल तो उसी पवित्र सीता माता के प्रति मर्यादा पुरुषोत्तम से भी अनायास हो ही गई न ?
सीता माता को वनवास देकर।
क्या आपको नहीं लगता की जहां एक और माता सीता को हाथ भी न लगाकर , उनकी पवित्रता और सतीत्व का सम्पूर्ण सन्मान करते हुए रावण ने कुछ अर्थों में मर्यादाओं के प्रति सन्मान और प्रतिबद्धता का भी परिचय दिया है ? क्या यह रावण के अन्दर विद्यमान अच्छाई नहीं थी ?
क्या आपको नहीं लगता है कि रावण के व्यक्तित्व में भी कहीं न कहीं राम छुपा बैठा था ?
हम अपने अन्तर्मन को टटोलें , अपने व्यक्तित्व में से रावण को निकाल फेकें और वहां राम की स्थापना करें .
शुभकामनाएं !
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