फर्क देखिये -
एक मंत्री जी को रिश्वत दीजिये , कोई काम करबाने के लिए
भरपेट खाने और लम्बी डकार लेने के बाद वे कहेंगे कि -
"ज़रा सेक्रेटरी को संभाल लेना , वर्ना ये लाल फीता शाही --- "
( संभाल लिए जाने के बाद ) सेक्रेटरी कहेगा ,
" ज़रा बाबू को संभाल लेना , साल्ले बड़े हरामी होते हें "
क्लर्क भी कहेगा कि
" ज़रा पियून को खुश कर देना , उसकी मर्जी के बिना यहाँ कुछ भी नहीं हिलता "
उक्त तीनों के बीच भी एक लंबा सिलसिला है जिसे आप सभी जानते ही हें।
अब आप क्रम को उलट दीजिये -
किसी काम के लिए मंत्रीजी को नहीं , सचिव को भी नहीं , क्लर्क को भी नहीं , चपरासी से संपर्क कीजिये -
वह आपको एक रेट और एक डेट बतला देगा , इसमें कोई बार्गेनिग भी नहीं होगी .
" बोला ना ! इतना लगेगा , आपका काम हो जाएगा ,
फलां तारीख तक -----
बाकी सबको मैं संभाल लूंगा , आप तो घर जाकर आराम से सो जाइये बस !
साहब बड़े अच्छे आदमी हें बात के पक्के , ईमानदार और काम करने वाले , उन्हें जनता के दुःख-दर्द का बड़ा ख्याल है "
और आपका काम हो भी जाएगा।
बेहतर कौन ?
शक्तिशाली कौन ?
विश्वसनीय कौन ?
कर्ता - धर्ता कौन ?
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