शौचालय या देवालय ?
पेट में अजीर्ण अधिक हो तो बार -बार शौचालय जाने की जरूरत पड़ती है ,
(सन्दर्भ - श्री नरेन्द्र मोदी का बयान देवालय से पहिले शौचालय आवश्यक है )
पेट में अजीर्ण अधिक हो तो बार -बार शौचालय जाने की जरूरत पड़ती है ,
अजीर्ण के रोगी को तो शौचालय किसी स्वर्ग से कम नहीं है , आखिर वह भयंकर पीड़ा से तुरंत राहत जो प्रदान करता है।
उन्हें शौचालय ही मुबारक।
अरे बस दो ही तो उपाय हें - हवाबाण हरडे खाना या शौचालय जाना।
"पसंद अपनी - अपनी , ख्याल अपना - अपना "
इसीलिए तो कहते हें कि शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है , शारीरिक स्वास्थ्य का असर विचारों पर पढ़ना स्वाभाविक ही है , भला इसमें किसी का क्या दोष ?
अब आदमी दिन में चार घाट का पानी पिए तो अजीर्ण होना भी स्वाभाविक ही है , ऐसे में आपको माइंड नहीं करना चाहिए
जिनके जीवन में शुद्धता हो और विचारों ( परिणामों ) में सात्विकता और कोमलता वे देवालय ( मंदिर ) जाना पसंद करते हें , जरूरी समझते हें
अपने योग्य अपनी - अपनी प्राथमिकता का चुनाव आप स्वयं करें।
किसी को दोष न दें , बुरा भला न कहें।
सबकी अपनी - अपनी मजबूरी है।
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