Saturday, August 23, 2014

क्यों अपने आप को अनजाने ही एक अन्याय कर्ता बना डालते हें और अपने आपको अन्याय का शिकार होने के लिए प्रस्तुत करते हें आप ?

दुनिया के अधिकतम लोगों ने अधिकतम दुनिया दूसरों की आँखों से देखी है , किसीने जैसा जो कुछ कह दिया हमने सुन और मान लिया , बस उसी के आधार पर अपनी धारणाएँ बनालीं और उन्हीं के आधार पर जीवन गुजार दिया , मानो ये जीवन भी अपना नहीं किसी और का ही हो .
अरे ! बो अपने भी तेरे कैसे अपने हें जिनके बारे में किसी और ने ( चाहे वह अपना हो या पराया ) आपसे कुछ कह दिया और उसीकी आधार पर आपने धारणाएँ बनालीं ?

क्या इसे ही अपनापन कहते हें ? फिर सौतेलापन किसे कहेंगे ? उपेक्षा किसे कहेंगे ? 
अरे भोले !
ज़रा विचार तो कर ! ये कैसी नादानी कर बैठता है तू !
मात्र किसी एक के कहने पर तू अपने ही किसी दूसरे के प्रति अपनी ( मिथ्या ) धारणाएं बना लेता है , उसे अपराधी , नीच-गलीच मान बैठता है , उसके प्रति घ्रणा करने लगता है , उसकी उपेक्षा करने लगता है , उसके साथ अन्याय और अनीति का व्यवहार तक करने लगता है , उसे खो देने तक की कीमत पर भी .
ऐसा करते हुए तुझे एक पल के लिए भी यह विचार तक नहीं आता है कि अभी तो मैंने मात्र एक पक्ष की बात सुनी है , और अब कोई धारणा बनाने से पहिले और कोई कदम उठाने से पहिले मुझे दुसरे सम्बंधित पक्ष की बात भी तो सुन लेनी चाहिए , सच जानने का प्रयास तो करना चाहिए , आखिर वह भी कोई गैर तो नहीं ही है न ? वह भी तो तेरा उतना ही अपना है , इस अनंत संसार में मात्र दो चार अपनों में से एक . आखिर मैं दो-चार में से भी एक-एक करके एक-दो कैसे खो सकता हूँ ?
जिसकी बात सुनकर मैंने दुसरे के प्रति अपनी धारणा बनाली है वह भी कोई दूध का धुला वीतरागी और सत्यवादी तो है नहीं , उसके भी कुछ निहित स्वार्थ तो हो ही सकते हें न ?
अरे जिसने तुझसे अपनी बात कही है , उसका पक्ष तो तेरे सामने आगया है और अब उसके पास कहने को इसके अलावा और कुछ नहीं है यह भी तय हो गया है पर जो अब तक कुछ नहीं बोला है , उसके बारे में तो अनन्त संभावनाएं खुली हुई हें , कुछ भी तो हो सकता है , हो सकता है वही सही हो और उसके साथ अन्याय हुआ हो –
-    हो सकता है वह कुछ कहकर वातावरण को दूषित नहीं करना चाहता हो .
-    या वह आपका समय खराब नहीं करना चाहता हो .
-    यह भी हो सकता है कि वह आपके अपने ही किसी व्यक्ति की भूल बतलाकर आपका दिल नहीं दुखाना चाहता हो .
-    या यह भी संभव है कि वह उसका ( शिकायत करने वाले का ) जघन्य अपराध आपके और अन्यों के सामने प्रकट करके उसे शर्मिन्दा नहीं करना चाहता हो , क्योंकि वह भी आखिर है तो हम में से ही एक , यदि हममें से कोई एक भी अपराधी हुआ तो क्या हम लोग समाज की नजरों से नहीं गिर जायेंगे ?
-    यह उसका बड़प्पन हो कि उसने उस अपराधी को माफ़ ही कर दिया हो पर वह अपराधी स्वयं अपने अपराध बोध के कारण यहाँ-बहाँ झूंठी बातें करता फिरता हो .
इस प्रकार यह संभव है कि तू एक अपराधी के पक्ष में खडा हो गया हो और अब एक निरपराध को दण्डित कर रहा हो ?
क्या तू स्वयं ऐसा करना चाहता है ?
नहीं न ?
तब ज़रा अपने व्यवहार और अपने अविवेक पर विचार तो कर !
क्या इस तरह हम एक आधा-अधूरा जीवन नहीं जीते हें .
क्या हम किसी सज्जन को दण्डित और अपराधी को महिमामंडित तो नहीं कर बैठते हें .
क्या इसीलिए यह दुनिया रहने लायक नहीं बचती हो .
क्या आप अपने विवेक को जाग्रत रखकर बड़े –बड़े अनर्थ होने से बचा नहीं सकते हें ?
क्या आप ऐसा करना नहीं चाहते हें ?
क्या आप अपने सम्बन्धियों और आसपास के अन्य लोगों को यह शिक्षा नहीं देना चाहते हें ?
क्या समाज के लिये आपका यह एक महत्वपूर्ण योगदान नहीं हो सकता है ?
क्या तू इस तरह से किसी सज्जन को सज्जनता बनाए रखकर शालीनता से जीवन जीने में मदद नहीं करना चाहता है ?
तू कितने ही होशियार क्यों न हो और अपने आपको कितना ही चतुर क्यों न समझता हो पर तू किसी व्यक्ति से उसका पक्ष सुने बिना किसी भी तथाकथित सबूत , घटनाक्रम और गवाही के आधार पर सच्चाई का निर्णय नहीं कर सकता है क्योंकि तू यह कल्पना ही नहीं कर सकता है कि तेरे सामने जितने पहलू , जितने पक्ष आये हें इनके अलावा और कितने पक्ष संभव हें , यह तो सिर्फ सम्बंधित व्यक्ति ही बतला सकता है .
तेरे आसपास ये जो दो-चार लोग हें , ये सभी तेरे अपने ही तो हें , तेरे बहुत ही करीबी . सारी दुनिया के प्रति न सही पर कमसेकम इन दो-चार लोगों के प्रति तो तुझे प्रतिबद्ध और सतर्क होना ही चाहिए कि कहीं इनके प्रति तुझसे कोई अन्याय न हो जाए . अन्याय तुझसे भी न हो जाए और ये लोग भी कहीं एक दूसरे के प्रति कोई अन्याय भरा व्यवहार न कर बैठें .
तेरा यह इकतरफा व्यवहार तेरी नादानी नहीं है ?
यदि तू आज इतनी सी सावधानी भी नहीं रखेगा और सब कुछ खो देगा फिर जब कभी अनायास ही सच्चाई तेरे सामने आजायेगी तब क्या होगा ? क्या तू अपने आपको माफ़ कर पायेगा ?
तूने सारा जीवन गुजार दिया पर अभीतक तूने कुछ नहीं जाना समझा कि तेरे सारे निर्णय और सारी धारणाएं मात्र एक पक्ष की ओर से सुनी , देखी और जानी हुई बातों पर ही आधारित हुआ करती हें .
जिन्हें तू जीवन के अनुभव कहता है और अपनी सबसे बड़ी सम्पत्ती मानता है बे सब मिथ्या हें
कितना नादान है तू कि तूने दूसरा पक्ष जानने-समझने की कभी कोशिश ही नहीं की , जरूरत ही नहीं समझी और शायद तुझे अहसास ही नहीं कि इन सबका कोई दूसरा पक्ष भी है और हो-नहो , वही सही हो !
तू भी कान का कितना कच्चा है कि जो बात पहिले सुनी , बस वही सच मानली .
उसी के आधार पर अपनी दृढ धारणाएं बनालीं .
और उन्हीं धारणाओं के आधार पर अपने जीवन की रीति-नीति तय करने लगा , जीवन जीने लगा .
जीवन जीने क्या लगा , जीवन बर्बाद करने लगा , बर्बाद कर डाला .
क्या तू यह मानता है कि जिनकी बातों को तू सच मान बैठा है वह कोई निस्वार्थ वीतरागी है जो तेरे सामने पक्षपात रहित सच ही बयान करेगा ?
और फिर क्या वह सर्वज्ञ है कि वह सबकुछ सच-सच जानता है और उसकी कही बात झूंठ और गलत हो ही नहीं सकती है .
अरे ! जिनकी बातें इसलिए भी गलत हो सकतीं हें कि वह अज्ञानी है और इसलिए भी कि वह भी एक रागी-द्वेषी और स्वार्थी व्यक्ति है , उसकी इकतरफ़ा बातों को सुनकर हम कैसे अपनी धारणाएं बना सकते हें ?
क्या हमें सच जानने–समझने और सच्चे निष्कर्षों पर पहुँचने की कोई जरूरत ही नहीं है ?
क्या हम झूंठी और गलत धारणाओं/विचारों के साथ ही जीना और मर भी जाना चाहते हें ?
क्या आपका ऐसा नादानी भरा व्यवहार आपका स्वयं अपने प्रति अन्याय और अत्याचार नहीं है ?
क्या आपका यह व्यवहार उन लोगों के प्रति भी आपका अन्याय भरा व्यवहार नहीं है जिन्हें आपने गलत समझ लिया ?
क्या आपका यह नासमझी और गलत धारणाओं पर आधारित व्यवहार सभीको नुक्सान नहीं पहुंचाता है , सारी दुनिया को ही गलत ढंग से प्रभावित नहीं करता है ?
क्या आप एक सच्ची समझभरा और न्यायपूर्ण व्यवहार वाला जीवन नहीं जीना चाहते हें ?
तब क्यों नहीं वस्तु का हर पक्ष जानने और समझने की और सच्चे निष्कर्षों पर पहुँचने की कोशिश करते हें ?
क्यों अपने आप को अनजाने ही एक अन्याय कर्ता बना डालते हें और अपने आपको अन्याय  का शिकार होने के लिए प्रस्तुत करते हें आप ?
अब इतना सब जानने के बाद भी क्या आप यही सब करते रहेंगे ? क्या अब भी अपने आप को बदलेंगे नहीं , क्या अब भी अपनी भूल नहीं सुधारना चाहेंगे , अपने आप को नहीं सुधारना चाहेंगे .
अपने आपको और अन्यों को होने वाले अन्याय से नहीं बचाना चाहेंगे ?
मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हें .

यूं तो प्रारब्ध ही वलवान है . 

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