इसी लेख से -
"विजयी होने का तेरा अहंकार मात्र किसी को पराजित नहीं कर सकता है, किसी की पराजय के लिए उसके अन्दर पराजय की स्वीकृति चाहिए, पराजय का भाव चाहिए, उसके अन्दर पराजय के अपमान का अहसास चाहिए, पराजय की पीड़ा चाहिए, कुंठा चाहिए."
वस्तुत: तो जय-पराजय कोई वस्तु ही नहीं है, यह तो मात्र एक अहसास है, एक छद्म अहसास.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अरे! किसके भरोसे तू दुनिया को ललकारने निकल पडा है?
"विजयी होने का तेरा अहंकार मात्र किसी को पराजित नहीं कर सकता है, किसी की पराजय के लिए उसके अन्दर पराजय की स्वीकृति चाहिए, पराजय का भाव चाहिए, उसके अन्दर पराजय के अपमान का अहसास चाहिए, पराजय की पीड़ा चाहिए, कुंठा चाहिए."
वस्तुत: तो जय-पराजय कोई वस्तु ही नहीं है, यह तो मात्र एक अहसास है, एक छद्म अहसास.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
अरे! किसके भरोसे तू दुनिया को ललकारने निकल पडा है?
हो
सकता है कलको तेरा आयु कर्म ही तेरा साथ न दे, तू ही न रहे इस देह में.
यदि
तू बना भी रहा तो हो सकता है कि यह सब करने का तेरा भाव ही मर जाए, तेरी कषाय ही
जीवित न रहे.
जहां
एक तिनका हिलाना भी तेरे हाथ में नहीं है वहां सारे जगत का कर्ता-धर्ता बना बैठा
है तू !
कैसे
सुखी होगा रे तू !
तू
सारे जगत का बॉस बनना चाह्ता है और चाहता है कि सब कुछ तेरी मर्जी से ही हो, तो तेरी जंग किसी एक से नहीं सारे जगत के साथ है.
जंग
इसलिए कि तेरी चाहत सारे जगत को अपना गुलाम बनाने की है और जगत में किसी को तेरी
गुलामी स्वीकार नहीं, किसी को भी नहीं.
यदि
तू यही चाहता है तो तू हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है भोले!
यहाँ
कुछ भी तो तेरे हाथ में नहीं है.
सबसे
पहिले तो तूने जिसके साथ मोर्चा खोला हुआ है उसका प्रारब्ध तेरे हाथ में नहीं है,
इतना ही नहीं कि तेरे हाथ में नहीं है वरन तुझे पता भी नहीं है कि उसके भाग्य में पराजय लिखी भी है या नहीं, हो नहो उसके भाग्य में विजय ही लिखी हो.
अरे
भोले! तुझे सामने वाले का प्रारब्ध मालूम नहीं इतना ही नहीं तुझे अपना स्वयम का
प्रारब्ध भी तो मालूम नहीं है, तू जंग छेड़ने को तो निकल पडा है पर तुझे कहाँ मालूम
है कि तेरे भाग्य में क्या है, जय या पराजय.
परिणाम
तो जब प्रकट होगा तभी ज्ञात होगा पर अनुमान तो अभी लगाया जा सकता है न?
संभावना
तो अभी स्पष्ट दिखाई दे रही है.
अरे! तेरे हाथ में कुछ भी तो नहीं है, जगत का कोई भी परिणमन तो तेरे विकल्प के
अनुसार होता नहीं है, तब तू कैसे उसे पराजित कर देगा?
फिर
तू जो सोच रहा है वह तू कभी कर भी गुजरे पर इतने मात्र से क्या उसकी पराजय हो
जायेगी?
वस्तुत:
तो जय-पराजय कोई वस्तु ही नहीं है, यह तो मात्र एक अहसास है, एक छद्म अहसास.
”
मन के हारे हार है मन के जीते जीत “
किसी
का तनिक अहित करके तू समझे कि तूने उसे पराजित कर दिया, उससे बदला ले लिया, तूने
अपनी समझ से उसे नुकसान पहुंचा दिया, पर हो सकता है उसने उस नुकसान पर गौर ही न किया हो, उसे उससे कोई फर्क ही न पड़ता हो, हो सकता है वह उसके ज्ञान का
ज्ञेय ही न बना हो या मात्र ज्ञान का ज्ञेय ही बनकर रह गया हो; उसे तेरे कृत्य से
कोई पीड़ा या क्षोभ ही न हुआ हो.
हो
सकता है उसे तेरा कृत्य वालक्रीडा सा लगता हो और उससे उसका मनोरंजन ही होरहा हो.
विजयी
होने का तेरा अहंकार मात्र किसी को पराजित नहीं कर सकता है, किसी की पराजय के लिए
उसके अन्दर पराजय की स्वीकृति चाहिए, पराजय का भाव चाहिए, उसके अन्दर पराजय के अपमान का
अहसास चाहिए, पराजय की पीड़ा चाहिए, कुंठा चाहिए.
यह
सब करना तेरे हाथ में है नहीं, इसलिए हे भोले! तू कभी किसी को पराजित नहीं कर
सकता.
इसलिए
तेरे लिए उचित और उत्तम यही है कि तू किसी को पराजित करने का भाव ही मन
से निकाल दे, यही तेरी जय है यही तेरी
विजय है.
यदि
कोई तुझपर आक्रमण करे तब भी तुझे उससे उलझने की आवश्यक्ता नहीं क्योंकि वह तुझे
विचलित ही नहीं कर सका यही तेरी विजय है और यही उसकी पराजय भी.
नियति
में फेरबदल करने की तेरी भावना ही तेरी पराजय है और नियति को स्वीकार करना ही तेरी
शक्ति. क्योंकि नियति में फेरफार करना तो जगत के किसी भी सर्वशक्तिमान के हाथ में
भी नहीं, किसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं.
क्यों ? कैसे ?
सर्वज्ञ हुए बिना कोई सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता है.
सर्वज्ञ होने का मतलब है कि सर्व द्रव्यों, सर्व
क्षेत्रों और सर्व कालों की सभी बातों को जाने, एक साथ जाने, सम्पूर्णपने जाने,
उसकी प्रत्येक डिटेल को जाने, भाव जाने, कारण-कार्यादिक जाने, उसके षटकारक जाने.
अब यदि किसी व्यक्तिविशेष के साथ समय विशेष पर घटित
होने वाली कोई घटना और उसका परिणाम उस सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ ने जान लिया है, तो
क्या उसमें कोई भी परिवर्तन संभव है?
क्या अपने किसी उपासक भक्त की प्रार्थना पर वह सर्वशक्तिमान
उसमें कोई छोटा सा भी फेरफार कर सकता है?
यदि उस सर्वज्ञ ने आज किसी बालक को भूँखा रहना ही
देखा हो तो क्या अनंत भक्तों की प्रार्थना पर भी वह उसको भोजन करा सकता है?
यदि हाँ! तो वह सर्वज्ञ नहीं रहा क्योंकि उसका ज्ञान
गलत निकला, जिसे उसने भूँखा रहना देखा था वह भूँखा न रहा.
जो सर्वज्ञ ही न रहा, जिसका ज्ञान झूंठा हो वह सर्वशक्तिमान
कैसा?
और यदि उसने उस भूंखे को अपने ही अनंत भक्तों की
प्रार्थना पर भी भोजन न कराया, न करबा सका, उस भूंखे बालक को भूंखे ही रहने दिया, तब वह कैसा सर्वशक्तिमान जो एक भूंखे बालक को अपने ही अनेकों भक्तों की
प्रार्थना पर एक बार भोजन भी न करा सके.
इस
प्रकार यह तो स्पष्ट है कि जगत में ऐसा कोई सर्वशक्तिमान नहीं है जो कि नियति में किसी
भी प्रकार का कोई फेरफार कर सके.
जब
कोई नहीं तो तू कैसे ऐसा कर सकता है?
एक
बात और!
जाने
भी दे इस बात को कि कोई सर्वशक्तिमान है या नहीं.
यदि
ऐसा कोई है भी तो तू तो वह नहीं है न?
यदि
है तो जो भी करेगा वह करेगा.
तू
तो तब भी कुछ भी करने का हकदार नहीं है न?
तब
क्यों तू इस बात को इमानदारी से स्वीकार नहीं कर लेता है कि तेरे हाथ में कुछ भी
नहीं है.
यदि
तू इस सत्य को स्वीकार कर लेता है तो तेरी इस जगत को अपनी इक्षा के अनुसार संचालित
करने की अनंत आकुलता समाप्त हो जायेगी और तू सम्पूर्ण सुखी हो जाएगा.
बस
तू तो पर का कर्तापना त्याग दे, पर से द्रष्टि ही हटाले यही तेरी विजय है, इसी
में तेरा कल्याण है.
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