Monday, July 20, 2015

यह संपत्ति है या विपत्ति ?

अरे भूले भगवान ! ये जो दुनिया की दौलत है न , यह तो एकांत (सिर्फ और सिर्फ ) दुःख ही है .
इसका कमाना दुखदायक है , संभालना दुखदायक है , भोगना दुखदायक है और छोड़ना भी दुखदायक है .

यह संपत्ति है या विपत्ति ?
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

अभी यह बात जाने भी दीजिये क़ि जो हमने भोग लिया वह हमारा हुआ या नहीं ; पर जो हमने भोगा नहीं , हमारी उस धन-संपत्ति में और उस सरकारी धन-संपत्ति में क्या फर्क है जिसका लेखाजोखा रखने की नौकरी हम करते हें .
हम दोनों का सिर्फ हिसाब ही तो रखते हें , हम उसका स्पर्श तक तो करते नहीं .
यदि कोई फर्क है तो सिर्फ इतना क़ि सरकारी हिसाब-किताब करके हम चैन की नींद सो जाते हें , हमें उसकी चिंता नहीं सताती है पर जिसे हम अपना मानते हें उसकी सुरक्षा की चिंता हमारी रातों की नींद हराम जरूर कर देती है .
अरे ! यह जो परिग्रह हमने कमा कर इकट्ठा कर लिया है इसने हमारा सिर्फ वही समय नहीं खाया है जो हमने इसे कमाने में व्यतीत किया है , वल्कि अब यह प्रतिपल हमारे उपयोग को खाता है , उलझाए रखता है , विकल्प जाल में .
यह निन्यानबे का फेर बड़ा खतरनाक है ! 
यदि १ रुपया कम है तो चित्त इस चिंतन ( चिंता , चिता ) में डूबा रहता है क़ि कहाँ से लाऊं और यदि एक ज्यादा हो जाता है तो यह चिंतन भी कोई कम नहीं क़ि अब इसे कहाँ ठिकाने लगाऊं क़ि कहीं नष्ट न हो जाए , बस बढ़ता रहे .
अरे ! ये कमाई सुकून तो पल भर को देती है ( क्या सचमुच देती है ?) पर सुकून जीवन भर का हर लेती है .
और तो और ; मरने के बाद इसका क्या होगा इसी चिंता में डूबा रहता है ये.
मन तो नहीं मानता ( यदि मानता तो जीतेजी न दे देता ? ), पर जिसके  कहने भर को भी कोई अपने हें वह तो अपनी संपत्ति उनके नाम करके सुकून पाता है ( झूंठा ही सही ) पर जिनका कोई अपना नहीं है उनकी ये दुर्दशा तो हमसे देखी ही नहीं जाती .
छाती फटती है उनकी .
खाया या भोगा जाता नहीं , आखिर कितना खायेगा या भोगेगा ; उसकी भी तो शक्ति चाहिए न ! 
साथ लेजा नहीं सकता और किसी को देने का मन नहीं करता है .
उसे तो बस यह़ी लगता है क़ि मैं लुटा जा रहा हूँ.
अरे भोले ! 
तू तो लुट ही चुका है. 
उस दिन नहीं जब तू यह सब छोड़कर मर जाता है या कोई यह सब तुझसे छीन लेता है.
तू तो उस दिन ही लुट चुका जब तूने यह सब इकट्ठा करने में अपना समय गंबा दिया, और रही सही कसर तेरी उस चिंता ने करदी जो तू इस सब के लिए करता रहा ( मरता रहा ).
अब जो यह पीड़ा तू भोग रहा है वह तो अतिरिक्त है.
अधिक क्या कहूं, अपने सुख-चैन और यहाँ तक कि जीवन को भी संकट में डालकर जब यह धन कमा लेता है तो इसकी अनेकों समस्याओं में एक समस्या और जुड़ जाती है. उक्त धन को सार्थक करने की चिंता.
आखिर करे क्या इस धन का; यदि इसका उपयोग ही नहीं किया तो कमाने का फायदा ही क्या है ?  
इस प्रकार अनेक कष्टों से उपार्जित इस धन को सार्थक करने के फेर में लोग अनावश्यक ही गन्दी आदतें अपना लेते हें और अपने तन, मन और जीवन को भी दूषित कर बैठते हें.
एक ओर तो धन की अधिकता होने पर व्यर्थ ही अनेकों लोग आपके इर्दगिर्द इस तरह से मंडराने लगते हें जिस प्रकार शक्कर के ऊपर चींटी. ये लोग निरन्तर आपके चित्त को उद्वेलित करते रहते हें, आपको चैन से बैठने ही नहीं देते हें.
ऐसे लोगों में अनेकों तो ऐसे होते हें जो येनकेनप्रकारेण आपसे आपका धन हड़प लेना चाहते हें, बहला-फुसलाकर दान या भिक्षा के नाम पर या फिर चोरी से या ठगकर भी. इनके अलावा अनेकों गुलाम वृत्ति के लोग तो ऐसे होते हें जिनके किसी भी प्रयोजन की सिद्धी किसी भी तरह से आपके द्वारा न तो होती ही है और न ही कभी हो सकती है तथापि बस खामखाँ अहो भाव से आपके इर्दगिर्द मन्डराते रहते हें और आपका ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न करते हुए आपको परेशान करते रहते हें.
यह दौलत आपको अपने प्रिय अपनों से दूर कर कर देती है, वे या तो अपनी उचित-अनुचित आशा-अपेक्षाएं पूरी न होने से, या इर्ष्या व द्वेष वश या, हीनता और उच्चता की भावना के वशीभूत होकर या और कुछ नहीं तो आपके पास उनके लिए समय का आभाव होने के कारण ही सही, आपसे दूर हो जाते हें और उनका स्थान ऐसे लोग लेलेते हें जिनसे आपका कोई मनमेल ही नहीं होता है, जैसे आपके अपने ही नौकर-चाकर, सहायक या चापलूस, ठग-चोर या भिखारी और इन सबसे बढ़कर वे सरकारी विभाग और कर्मचारी जो वलात ही आपको लोभ देकर,  भय दिखाकर या डरा-धमकाकर आपका धन आपसे छीन लेने के फेर में रहते हें, मात्र चोर ही नहीं पुलिस की निगाह भी आपकी दौलत पर लगी रहती है, आपके रक्षक ही आपके भक्षक बन जाते हें.
अधिक क्या कहूं, वे लोग जिन्हें आपसे और आपको जिनसे कोई सारोकार ही नहीं ऐसे लोग भी व्यर्थ ही  आपके प्रति द्वेष पालकर बैठ जाते हें और यत्र तत्र सर्वत्र ही आपके प्रति कदम-कदम पर अपशब्दों का इस्तेमाल करते देखे जाते हें, यथा - "हूँह ! काली कमाई पर इतरा रहा है" और न जाने क्या क्या. ऐसे लोग आपको अपराधी और आपकी दौलत को अन्याय से अर्जित अपवित्र करार देते नहीं थकते. ये आपको समाज के शोषक कहते और मानते हें.

अरे भूले भगवान ! इस प्रकार हम यह पाते हें कि ये जो दुनिया की दौलत है न, यह तो एकांत (सिर्फ और सिर्फ ) दुःख ही है.
इसका कमाना दुखदायक है, संभालना दुखदायक है, भोगना दुखदायक है और छूटजाना भी दुखदायक है.
फिर क्यों उलझा रहता है बस इसी में ?
इसे छोड़ दे , तभी तेरा कल्याण होगा .



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