“मैं इस मनुष्य जीवन के पूर्व भी था और इसके बाद भी रहूँगा” हमारे कल्याण के लिए, हमारे हित में इस तथ्य की स्वीकृति ही सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि तभी मैं अपने (आत्मा के) त्रैकालिक अविनाशी कल्याण के लिए प्रवृत होउंगा और अपना समय मात्र अपने आज के लिए, अपनी वर्तमान पर्याय के लिए,इस मनुष्य भव के हित के लिए बर्बाद नहीं करूंगा.
Parmatm Prakash Bharill: क्या यह उचित है, क्या यह हमारे हित में है कि हम अप...: इसी लेख में से _ "इस जीवन में मेरी जीवन शैली कैसी हो , इस जीवन में मेरा कर्त्रत्व क्या हो यह निर्णय करने के लिए यह निर्णय हो...
मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
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