- परमात्म नीति (2)
- हमारा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व का आईना बने अन्यों का नहीं
(2)
- अन्य लोगों का व्यवहार देखकर अपना व्यवहार निर्धारित करने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता है क्योंकि उसका यह व्यवहार उसके स्वभाव, क्षमता, नीति, योग्यता और हैसियत के अनुरूप नहीं होगा.
यद्यपि वह (जिसका अनुसरण किया जारहा है) स्वयं सफल है, क्योंकि वह वह अपने स्वभाव, क्षमता, नीति, योग्यता और हैसियत के अनुरूप व्यवहार कर रहा है.
यद्यपि वह (जिसका अनुसरण किया जारहा है) स्वयं सफल है, क्योंकि वह वह अपने स्वभाव, क्षमता, नीति, योग्यता और हैसियत के अनुरूप व्यवहार कर रहा है.
भला दूसरे के नाप के कपडे पहिनने पर कोई कैसे शोभायमान हो सकता है?
नहीं
शोभते हें वस्त्र भी यदि, अपनी माप से ही ना बनें
व्यवहार
भी नहीं शोभता यदि, वह नकल अन्यों की करे
स्वयं
की रूचि, योग्यतावत , यदि स्वयं का व्यवहार हो
वह
स्वयं को अनुकूल हो वा, सब अन्य को स्वीकार हो
- निष्कर्ष
हमारा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व का आईना बने अन्यों का नहीं, इसके लिए आवश्यक है कि हम अपना व्यवहार स्वयं निर्धारित करें, दूसरों को देखकर भ्रमित न हों.
घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
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