- परमात्म नीति - (30)
- समाधिमरण मौत की प्रक्रिया नहीं है वरन म्रत्यु से पूर्व सात्विक, गरिमामय, उत्कृष्टतम जीवनशैली है.
यहतो समाधिमरण नाम में मरण शब्द का प्रयोग है जो कि भ्रम उत्पन्न करता है, अन्यथा यह तो जीवन जीने की कला है-
उदाहरण के लिए यदि हम कहें कि – “वह १० दिन से अस्पताल में मृत्यु से संघर्ष कर रहा है”
तो क्या यह वाक्य सही है?
नहीं!
क्योंकि अभी म्रत्यु है ही कहाँ कि उससे संघर्ष किया जाए? म्रत्यु तो अभी आयी ही नहीं है.
अभी तो वह जीवन जीरहा है, अपनी सम्पूर्ण जिजीबिषा के साथ. इस प्रक्रिया के साथ मौत को जोड़ना ही गलत है.
इस प्रकार हम देखते हें कि समाधिमरण मौत की प्रक्रिया नहीं है वरन म्रत्यु से पूर्व सात्विक, गरिमामय, उत्कृष्टतम जीवनशैली है. यह तो जीवन की एक लम्बी प्रक्रिया है, म्रत्यु तो एक समय की घटना है, उसमें हमारा कर्त्रत्व ही क्या है?
स्वाभाविक मृत्यु की ओर अग्रसर साधक को, जिसे
न तो म्रत्यु का भय हो और न ही जीवन का लोभ, जिसे न तो जीवन
से विरक्ति हो गई हो और न ही जो मृत्यु के लिये आतुर व लालायित हो, अपनी भूमिका की मर्यादा में रहकर प्रतिकार संभव न होने (अतिचार रहित
चिकत्सा संभव न रहने पर) की स्थिति में या जब जीवन का पोषण करने वाला अन्न ही जीवन
का शोषण करने लगे अर्थात भोजन का ग्रहण और पाचन स्वाभाविक रूप से स्वत: ही बंद हो
जाए तो, अहार का त्याग करदेने/होजाने को और स्वाभाविक रूप से
होरही म्रत्यु को सहज भाव से ज्ञाता-द्रष्टा रहकर स्वीकार करने को सल्लेखना या
समाधिमरण कहते हें.
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यह क्रम जारी रहेगा.
उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.
- घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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