- परमात्म नीति - (29)
- हमारा उद्देश्य अपना उत्थान होना चाहिए औरों का पतन नहीं.
- अपने उत्थान का कार्य अत्यंत आसान है और अन्य के पतन का कार्य अत्यंत दुरूह (कठिन) क्योंकि अन्यों के पतन में अपने उत्थान की अपेक्षा अनंत शक्ति चाहिए.
क्यों?
- क्योंकि मैं एक हूँ व अन्य अनंत हें इसलिए अपने उत्थान के लिए मात्र एक ही स्थान पर काम करना होगा पर अन्यों के पतन के लिए अनेक स्थानों पर.
- अपने उत्थान में प्रतिरोध कम है औरों के पतन में अनंत परायों की ओर से अनंत प्रतिरोध का सामना करना होगा.
- अपने उत्थान का उत्साह हमारी कार्यक्षमता और ऊर्जा को बढाता है जबकि अन्य के पतन के काम में प्रयुक्त द्वेष हमारी शक्ति को क्षीण करता है.
- अपने उत्थान के सहयोगी मिलने आसान हें, पर के पतन के लिए सहयोगी मिलने भी कठिन है.
- अपने उत्थान का काम गौरव को बढाने वाला है, अन्य को गिराने का काम अपने गौरव को कम करने वाला है.
- अपने उत्थान का काम खुलेआम किया जा सकता है, अन्य को गिराने का ध्वंसात्मक (destructive) काम गुप्त रूप से करना पड़ता है.
- अपने उत्थान का काम स्वाधीन क्रिया है, पर के पतन का काम पराधीन.
- हमारे उत्थान से हमारा हित होता है, पर के पतन से हमें क्या मिलेगा?
उक्त तथ्यों पर विचार करके हमें पर की ओर से अपना अध्यान हटाकर स्वयं अपने उत्थान और प्रयोजन की सिद्धी की ओर ही ध्यान केन्द्रित करना ही योग्य है. इसीमें हमारा भी हित है और सबका भी.
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यह क्रम जारी रहेगा.
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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.
- घोषणा
यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.
यह क्रम जारी रहेगा.
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
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