Saturday, September 12, 2015

परमात्म नीति - (49) - महानलोग कल्पनाशील और स्वप्नद्रष्टा होते हें.

कल हमने पढ़ा कि -

महान माने जाने लोगों के सभी व्यवहार भी तो हम लोगों जसे ही होते हें, तब वे महान क्यों और हम सामान्य क्यों ?

अब आगे पढ़िए -


परमात्म नीति - (49)

- महानलोग कल्पनाशील और स्वप्नद्रष्टा होते हें.






                                           स्वप्नद्रष्टा 


यदि हम द्रष्टिपात करें तो पायेंगे कि जो लोग महान की श्रेणी में आते हें

उनमें अमूमन निम्नलिखित गुण पाए जाते हें-
हम प्रतिदिन महानता के एक-एक गुण की व्याख्या करेंगे.


1. वे स्वप्न द्रष्टा होते हें :- 


सामान्यजन जहां विचारों में दरिद्री होते हें और स्वप्न देखने में भी कंजूस. 

वे बड़ी बात सोचते ही नहीं हें, उनकी कल्पना के घोड़े दाल-रोटी, भाई-भतीजे, गली-मुहल्ले और आज -कल से आगे दौड़ते ही नहीं. 
वहीं महान लोग स्वप्न द्रष्टा होते हें, वे बड़े-बड़े स्वप्न देखते हें, उनका सोच महान होता है.
भला जो स्वप्न ही नहीं देखेगा वह कुछ करेगा कैसे ?

असम्भव से दिखने वाले ख़्वाब देखना मूर्खता कहलाता है और असम्भव (दिखने वाली बात) को सम्भव में बदल देना महानता.

असंभव से दिखने वाले लक्ष्य को पाने के कठोर प्रयास (व्यक्ति की) 
सनक  (craze, mania) कहलाते हें और सफलता कहलाती है महानता.

इस प्रकार हम पाते हें कि "मूर्खता और महानता में " या  "सनक और महानता में " फर्क सिर्फ परिणाम का होता है, सोच और व्यवहार का नहीं. 







क्या यह हमारा स्वयं का मूर्खता और निष्ठुरता भरा व्यवहार नहीं कहलायेगा कि हम एक महान कल्पनाशील स्वप्नद्रष्टा को मूर्ख और महान कठोर साधक को सनकी करार देदें?


यदि किसी साधक को पर्याप्त समय न मिले तो वह सफलता के निकट पहुंचकर भी असफल ही रह सकता है, तो क्या वह व्यक्ति महान नहीं है?


वेशक उपलब्धी महान न हो पर व्यक्ति, उसके सपनों और प्रयत्नों की महानता में क्या शक?


महान लोग स्वप्न देखते हें, मार्ग खोजते हें और आगे बढ़ जाते हें. 







कैसे बनें हम स्वप्नद्रष्टा ?

जानने के लिए पढ़ें , परमात्म नीति - (50) बीं कड़ी , कल 


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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 



















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