Monday, October 26, 2015

सल्लेखना व्यक्तिगत साधना है, प्रदर्शन की वस्तु नहीं

सल्लेखना व्यक्तिगत साधना है, प्रदर्शन की वस्तु नहीं 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

सल्लेखनापूर्ण म्रत्यु को जन-जन के बीच चर्चा का बिषय बना देने के पीछे स्वयं हम लोगों का योगदान भी कम नहीं है जिन्होंने नितांत व्यक्तिगत इस साधना को बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया. अन्यथा यह तो वह क्रिया है कि - “ज्यों निधी पाकर निज वतन में गुप्त रह जन भोगते----“.
साधना तो एकांत में की जाती है, वह भी गुप्त रहकर, भला साधक और साधना को प्रचार से क्या वास्ता?
जिस प्रकार वस्तुत: तो श्रृंगार स्वयं अपने लिए और अपने जीवनसाथी के लिए किया जाता हैजो अन्यों के लिए सजे-संवरे उसे तो कुछ और ही कहा/समझा जाता है.
कहीं तू भी प्रदर्शन के लिए ही तो त्याग/तपस्या नहीं कर रहा है?
यदि ऐसा है तो ज़रा विचार कर कि तू किस श्रेणी में आता है

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