Thursday, November 10, 2011

हम 2 in 1 हें . हम एक हें पर हमारे व्यक्तित्व दो हें . हम सभी दोहरे व्यक्तित्व के साथ जीते हें .---क्यों ना हम इस ऊपर से लादे गए क्रत्रिम व्यक्तित्व के छोले को उतार फेकें और अपना स्वाभाविक जीवन जियें , इसीमें अपना हित है और इसीमें सबका भी .

हम 2 in 1 हें .
हम एक हें पर हमारे व्यक्तित्व दो हें .
हम सभी दोहरे व्यक्तित्व के साथ जीते हें .
एक वह जो हम हें और दूसरा वह जैसे हम दिखना चाहते हें .
हो न हो हम इस भ्रम में जीते हों क़ि हम बैसे दिख रहे हें जैसे हम दिखना चाहते हें ,जैसा दिखने का हम प्रयास कर रहे हें .
पर सच मानिए यह विल्कुल सही नहीं है .
लोग यह तो भली भाँती जानते ही हें क़ि असलियत में हम क्या हें , हमारी असलियत क्या है , साथ ही जल्दी ही वे यह बात भी बाहुत अच्छी तरह से समझ जाते हें क़ि हम कैसे दिखने का प्रयास कर रहे हें .
चाहे इसे सभ्यता का विकास कहलें या अपनी मजबूरी क़ि सब कुछ जानते समझते हुए भी कोई यह बात प्रकट ही नहीं करता है क़ि वह आपकी असलियत को जानता है ,और हम इस भ्रम में जीकर संतुष्ट बने रहते हें क़ि हम अपनी एक्टिंग में सफल रहे .
सच्चाई यह है क़ि अपने इस तरह के प्रयास में आजतक कोई भी सफल नहीं हुआ है .
सभी लोग न भी सही पर कोई तो (और शायद बहुतायत लोग ) हमारी हकीकत जान ही लेता है और फिर आपसी अन्तरंग चर्चाओं के माध्यम से वह यथार्थ सम्बन्धित समूह में पकात हो जाता है .
मानव मात्र को ,यहाँ तक क़ि छोटे -छोटे अबोध बालकों को भी यह क्षमता हासिल है क़ि बे सामने बाले के अव्यक्त अभिप्राय को सही सही समझ लेते हें .
हम जैसे हें वैसे ही दिखने में कहीं कोई प्रयास की आवश्यकता नहीं है यह काम तो स्वत: ही हो जाता है , हम चाहें या न चाहें और इसलिए ऐसा व्यक्ति न सिर्फ आकुलता रहित और सुखी रहता है वल्कि उसके पास अन्य कार्यों के लिए भरपूर ऊर्जा संचित रहती है .
जो व्यक्ति अपनी हकीकत को छुपाकर कुछ अन्य दिखने का प्रयास करता है उसकी अधिकतम ऊर्जा और अधिकतम समय इन्हीं प्रयासों में नष्ट हो जाता है और वह सदा ही आकुलित भी बना रहता है . दूसरे शब्दों में कहें तो अन्यों को भ्रमित करने के असफल प्रयासों में हम स्वयं को ही सजा देते रहते हें , स्वयं अभिशप्त बने रहते हें .
इस बोझिल चर्चा से थोड़ा हटते हुए हम एक हल्का फुल्का और बहिरंग उदाहरण ले लें तो बात स्पष्ट हो जायेगी .
कुछ लोगों के बाल घुंघराले होते हें और कुछ के सीधे .
यह स्वाभाविक ही है क़ि सभी लोगों में उसकी चाहत बनी रहती है जो उसके पास नहीं है , और बस यह़ी समस्या की जड़ है .
घुंघराले बालों बाले लोग अपने बालों को सीधे करने के प्रयासों में लगे रहते हें और इसके लिए व्यग्र और वेचैन बने रहते हें और उनके उलट सीधे बालों बाले लोग अपने बालों को घुंघराले बनाने के फेर में पड़े रहते हें . इस प्रकार दोनों ही लोग अपना समय और पैसा तो बर्बाद करते ही हें , मानसिक संताप भी भोगते हें .
यदि हम जैसे हें बैसे ही बने रहें तो इस आकुलता और नुकसान से स्वत: ही बचा जा सकता है .
हमारा असली व्यक्तित्व इसलिए निष्कर्म बना रहता है क़ि हम ही उसे कुछ करने नहीं देते हें और लादा गया व्यक्तित्व इसलिए कुछ नहीं कर पाता है क्योकि उसमें आत्मवल नहीं है .

क्यों ना हम इस ऊपर से लादे गए क्रत्रिम व्यक्तित्व के छोले को उतार फेकें और अपना स्वाभाविक जीवन जियें , इसीमें अपना हित है और इसीमें सबका भी .

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