प्रतिदिन ये सूरज तमतमाया सा उगता है
फिर थका हारा सा डूब जाता है
लगता तो यूं था
क़ि आज तो कुछ कमाल ही कर देगा
सारी विकृतियों को भस्म कर डालेगा
और जिन्दगी में उजाले भर देगा
पर कुछ भी नहीं बदलता
दिन यूं ही गुजर जाता है
बस कलेंडर में तारीख का
पन्ना बदल जाता है
अब लगता है
इन चाँद तारों के भरोसे कुछ नहीं होगा
हमें ही कुछ करना होगा
जीवन के हर पहलू में
चुन चुनकर
इक नया रंग भरना होगा
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