माना क़ि लोकपाल एक और थानेदार बन जाएगा जो लोगों को डराएगा या लोग जिससे डरेंगे , हो सकता है क़ि कालान्तर में वह लोकपाल भी आपको न डराने की कीमत बसूलने लगे ,पर क्या फर्क पड़ता है ,अब तक यह कीमत १२५ करोड़ लोग चुका रहे हें फिर कुछ लाख लोग और इसमें जुड़ जायेंगे .
जब ये कुछ लाख सक्षम लोग इस श्रेणी में आ जायेंगे तो मार्ग निकल आयेगा .
डराना तो हमें कुछ लाख लोगों को भी नहीं है , वे भी तो हमारे ही बंधु - बांधव हें , दरअसल गलत तो वे भी नहीं हें , गलत तो कुछ गिने चुने लोग हें और उन्हीं चुनिन्दा लोगों को देखकर इन कुछ लाख लोगों के पेट में भी मरोड़ उठती है क़ि " वे कमा गए - हम रह गए " .
जब ये लोग उन लोगों को दण्ड पाता देखेंगे तो ये तो बने बनाए शरीफ हें ही , इन्हें शरीफ बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी .
सचमुच तो यदि दण्ड पाना निश्चित हो जाए तो वे कुछ गिने चुने लोग भी गलती नहीं करें , वे तो इस फार्मूले पर ही काम करते हें क़ि " रिश्वत पकड़ी जाये तो छूट जाएँ रिश्वत देकर "
यदि छूटना संभव ही न रहे तो वे भी ऐसा नहीं करेंगे .
जब कोई भी गलत नहीं रहेगा तो क़ानून का दुरूपयोग होगा कैसे ?
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