Thursday, June 28, 2012

अब तक हममें इतनी मिलावट हो चुकी है क़ि हम ,हम रहे ही नहीं , हममें हमारा अंश ही न रहा , हम कुछ और ही हो गए हें . ऐसे कुछ , जिनका न कोई प्रयोजन है न कोई विचार . क्या हमें ऐसे ही जीना है और ऐसे ही मर जाना है ?


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हम दूसरे की आँखों से देखते हें , दूसरे के कानों से सुनते हें और दूसरे के नजरिये (द्रष्टिकोण ) से ही सोचते हें .
तब हम , हम कहाँ रहे ?
हम तो बो हो गए जो वे हें .
हम हर बात में अन्यों का ही अंधा अनुकरण करते हें , हमारी जीवन शैली में विवेक को कोई स्थान ही नहीं है .
जाने कब किस कमजोर क्षण में कौन हमको प्रभावित कर जाता है , हमें कौनसा इन्फेक्सन लग जाता है .
कहीं हमारा व्यक्तित्व letterbox की तरह वीतरागी तो नहीं हो गया है , जहाँ जो भी व्यक्ति जो कुछ भी चाहे डाल जाता है , वह कभी इन्कार नहीं करता है , चाहे समाचार अच्छा हो या बुरा , लाभदायक हो या हानिकारक , अरे ! बम हो या मरा हुआ सांप , उसे फर्क नहीं पड़ता , वह इन्कार नहीं करता .
अब तक हममें इतनी मिलावट हो चुकी है क़ि हम ,हम रहे ही नहीं , हममें हमारा अंश ही न रहा , हम कुछ और ही हो गए हें .
ऐसे कुछ , जिनका न कोई प्रयोजन है न कोई विचार .
क्या हमें ऐसे ही जीना है और ऐसे ही मर जाना है ?
क्या हमें हम नहीं बनना है ?
क्या हमारा जीवन स्वयं हमारे ही विचारों की प्रयोगशाला नहीं होना चाहिए ? 
यदि हाँ तो फिर क्यों नहीं हम विचारवान बनें , अपने जीवन के शिल्पी स्वयं बनें और अपने जीवन को एक अनुपम शिल्प बनाएं .
एक अनुपम शिल्प !----------------continued more ahed,to read , click on blue link above .

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