Friday, July 13, 2012

अब तू संयोगवश जहाँ पैदा हो गया बस वहीं अटक जाता है , उसे ही सत्य मान बैठा है , बिना परीक्षा किये - बिना जांचे परखे . बस उसी से चिपका रहना चाहता है , उसी का प्रचार और प्रसार करना चाहता है और फिर तुझे मोक्ष चाहिए . अरे तू स्वयं अपने को अपने दुराग्रह से मुक्त नहीं करता है , कर पाता है फिर किससे क्या उम्मीद करता है ?

अब संसार में अनेकों धर्म हें , अनेकों गुरु हें , अनेकों विचारधाराएँ हेँ और वे सब एक दूसरे से भिन्न हेँ , एक दूसरे से एकदम विपरीत हेँ .
एक दूसरे से विपरीत वे सभी विचारधाराएँ तो सत्य हो नहीं सकतीं हेँ , सत्य तो उनमें से कोई एक ही होगा .
कौन सत्य है , कौन सच्चा है इसका निर्णय कौन करेगा ?
क्या वे करेंगे ?
वे तो सभी अपने आप को ही सत्य कहेंगे न ? तब यह निर्णय तो तुझे ही करना होगा , तुझे अकेले ही . 
आखिर यह तेरे अपने हित की बात है , तेरे अपने हित और कल्याण का सबाल है बाबू !
अब तू संयोगवश जहाँ पैदा हो गया बस वहीं अटक जाता है , उसे ही सत्य मान बैठा है , बिना परीक्षा किये - बिना जांचे परखे .
बस उसी से चिपका रहना चाहता है , उसी का प्रचार और प्रसार करना चाहता है और फिर तुझे मोक्ष चाहिए .
अरे तू स्वयं अपने को अपने दुराग्रह से मुक्त नहीं करता है , कर पाता है फिर किससे क्या उम्मीद करता है ?

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