Thursday, July 19, 2012

आवश्यकता होती है एक सजग माली की क़ि जो उस खरपतवार को साफ़ करता रहे , पनपने न दे और अपनी चाहत के पौधों की सुरक्षा भी करे . जिस बगीचे का माली सजग होता है वह बगीचा मेंटेन रहता है सभी उसकी ओर आकर्षित होते हें , जहाँ का माली लापरवाह या आलसी होता है वह बगीचा जंगल में बदल जाता है .

हम अपने बगीचे में स्वादिष्ट फल और मन भावन सुगन्धित फूलों के पेड़ लगाते हें तो उन्हें बहुत संभालना पड़ता है तब वे जीवित रह पाते हें और लगातार सम्भाल करते रहने पर वे पलते बढ़ते हें , फल और फूल देते हें पर उनके साथ खरपतवार ( जंगली झाड़ झंखाड़ ) अपने आप उग आती है और छा जाती है, खूब फलती और फूलती है अपने वंश को बढाती है .
खरपतवार ज़मीन सारी उर्वरा शक्ति ( खाद ) का शोषण कर लेती है और फल और फूलों के इक्षित पौधों के लिए कुछ बचता ही नहीं है .
आवश्यकता होती है एक सजग माली की क़ि जो उस खरपतवार को साफ़ करता रहे , पनपने न दे और अपनी चाहत के पौधों की सुरक्षा भी करे .
जिस बगीचे का माली सजग होता है वह बगीचा मेंटेन रहता है सभी उसकी ओर आकर्षित होते हें , जहाँ का माली लापरवाह या आलसी होता है वह बगीचा जंगल में बदल जाता है .

हमारा व्यक्तित्व भी एक बगीचा है .
हम चाहें तो अपने व्यक्तित्व में सद्गुणों का बीजारोपण करें , उनकी सुरक्षा करें , उन्हें विकसित करें और दुर्गुणों की खरपतवार को पनपने ही न दें .
एक-एक दुर्गुण को चुन - चुनकर उखाड़ फेकें . क्योंकि नहीं तो वे दुर्गुण हमारे व्यक्तित्व पर छा जाते हें और सद्गुणों को पनपने ही नहीं देते हें .
इसके लिए हमें एक सजग माली बनना होगा , उसकी ही तरह कड़ी मेहनत करनी होगी एक-एक दुर्गुण को चुन - चुन कर उखाड़ फेकने की और सद्गुणों को विकसित करने की .
यदि हम ऐसा कर पाए तो हमारा व्यक्तित्व सद्गुणों का एक महकता उपवन बन सकेगा .

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