Tuesday, August 21, 2012

हम जीवन जीने के साधन जुटाने में ही जीवन खपा देते हें , जीवन के लक्ष्यों की ओर तो हमारा ध्यान ही नहीं जाता है . हमें लक्ष्य और साधन का फर्क समझना होगा .--------------भूल समझनी होगी , भूल सुधारनी होगी . यदि हम ऐसा कर पाए तो हमारा कल्याण होगा .--

हम जीवन जीने के साधन जुटाने में ही जीवन खपा देते हें , जीवन के लक्ष्यों की ओर तो हमारा ध्यान ही नहीं जाता है .
हमें लक्ष्य और साधन का फर्क समझना होगा .
हमें अपने जीवन में क्या पाना है , क्या उपलब्ध करना है , कहाँ पहुंचना है , हमें यह तय करना होगा .  
जैसे क़ि हमें इस जीवन में जन्म और मरण का अभाव करना है ; अपने पूर्णता के स्वरूप को समझना है , पहिचाना है ; पर्याय के विकारों से मुक्ति पाकर शुद्धता प्रकट करनी है .
वह सब उपलब्ध करने के लिए हमें क्या करना होगा वह विधि समझनी होगी , विकसित करनी होगी .
फिर यह सब करने के लिए हमें जीना भी तो होगा ; और जीवन के लिए हमें जीने के साधन जुटाने होंगे .
क्या हें जीवन के साधन ?
भोजन , वस्त्र , आवास  यानी क़ि रोटी , कपड़ा और मकान . 
इनके बाद नंबर आता है स्वास्थ्य , मनोरंजन , शिक्षा आदि .
उक्त सभी वस्तुएं जुटाने के लिए हमें धन चाहिए और धन के लिए रोजगार .
इस प्रकार जन्म -मरण का अभाव करना अपने जीवन का लक्ष्य हुआ , रोटी -कपड़ा और मकान आदि साधन हुए और रोजगार हुआ साधन जुटाने का साधन .
इस प्रकार रोजगार हमारे जीवन का साधन भी नहीं यह तो जीवन के साधनों को जुटाने का साधन है , यह तो साधनों का साधन है .
वस्तुत: तो साधनों को जुटाने का साधन भी धन ( रुपया -पैसा ) है , रोजगार नहीं ; रोजगार तो रुपया -पैसा कमाने का साधन है .
इस प्रकार रोजगार तो जीवन के साधन के साधन का साधन हुआ .
पर हमसे भूल यह हुई है क़ि हमने इसे ही जीवन का लक्ष्य बना लिया है ; अपना सारा समय , सारा पुरुषार्थ , सारा ध्यान  अरे ! सारा जीवन ही इस पर ही समर्पित कर दिया है , मात्र इसी पर .
इस क्रम में हम जीवन के लक्ष्य को तो भूल ही गए पर जीवन के साधन नंबर एक भी उपेक्षित हो गए .
मेरा मतलब है भोजन , स्वास्थ्य , मनोरंजन से .
हम कमाने में ही इतने व्यस्त हो गए क़ि हमारे पास खाने और मनोरंजन के लिए भी समय नहीं बचा .
क्या यह भटकाव नहीं है ?
हमें सोचना होगा !
भूल समझनी होगी , भूल सुधारनी होगी .
यदि हम ऐसा कर पाए तो हमारा कल्याण होगा .

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