Wednesday, August 22, 2012

यह संपत्ति है या विपत्ति ?


यह संपत्ति है या विपत्ति ?
अभी यह बात जाने भी दीजिये क़ि जो हमने भोग लिया वह हमारा हुआ या नहीं ; पर जो हमने भोगा नहीं , हमारी उस धन-संपत्ति में और उस सरकारी धन-संपत्ति में क्या फर्क है जिसका लेखाजोखा रखने की नौकरी हम करते हें .
हम दोनों का सिर्फ हिसाब ही तो रखते हें , हम उसका स्पर्श तक तो करते नहीं .
यदि कोई फर्क है तो सिर्फ इतना क़ि सरकारी हिसाब-किताब करके हम चैन की नींद सो जाते हें , हमें उसकी चिंता नहीं सताती है पर जिसे हम अपना मानते हें उसकी सुरक्षा की चिंता हमारी रातों की नींद हराम जरूर कर देती है .
अरे ! यह जो परिग्रह हमने कमा कर इकट्ठा कर लिया है इसने हमारा सिर्फ वही समय नहीं खाया है जो हमने इसे कमाने में व्यतीत किया है , वल्कि अब यह प्रतिपल हमारे उपयोग को खाता है , उलझाए रखता है , विकल्प जाल में .
यह निन्यानबे का फेर बड़ा खतरनाक है ! 
यदि १ रुपया कम है तो चित्त इस चिंतन ( चिंता , चिता ) में डूबा रहता है क़ि कहाँ से लाऊं और यदि एक ज्यादा हो जाता है तो यह चिंतन भी कोई कम नहीं क़ि अब इसे कहाँ ठिकाने लगाऊं क़ि कहीं नष्ट न हो जाए , बस बढ़ता रहे .
अरे ! ये कमाई सुकून तो पल भर को देती है ( क्या सचमुच देती है ?) पर सुकून जीवन भर का हर लेती है .
और तो और ; मरने के बाद भी इसका क्या होगा इसी चिंता में डूबा रहता है ये .
मन तो नहीं मानता ( यदि मानता तो जीतेजी न दे देता ? ) , पर जिसके कोई कहने भर को भी अपने हें वह तो अपनी संपत्ति उनके नाम करके सुकून पाता है ( झूंठा ही सही ) पर जिनका कोई अपना नहीं है उनकी ये दुर्दशा तो हमसे देखी ही नहीं जाती .
छाती फटती है उनकी .
खाया या भोगा जाता नहीं , आखिर कितना खायेगा या भोगेगा ; उसकी भी तो शक्ति चाहिए न ! 
साथ ले नहीं जा सकता और किसी को देने का मन नहीं करता है .
उसे तो बस यह़ी लगता है क़ि मैं लुटा जा रहा हूँ .
अरे भोले ! 
तू तो लुट ही चुका है . 
उस दिन नहीं जब तू यह सब छोड़कर मर जाता है या कोई यह सब तुझसे छीन लेता है .
तू तो उस दिन ही लुट चुका जब तूने यह सब इकट्ठा करने में अपना समय गबां दिया , और रही सही कसर तेरी उस चिंता ने करदी जो तू इस सब के लिए करता रहा ( मरता रहा ) .
अब जो यह पीड़ा तू भोग रहा है वह तो अतिरिक्त है .
अरे भूले भगवान ! ये जो दुनिया की दौलत है न , यह तो एकांत (सिर्फ और सिर्फ ) दुःख ही है .
इसका कमाना दुखदायक है , संभालना दुखदायक है , भोगना दुखदायक है और छोड़ना भी दुखदायक है .
फिर क्यों उलझा रहता है बस इसी में ?
छोड़ दे , तभी तेरा कल्याण होगा .

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