Wednesday, August 22, 2012

यदि कोई मौत की सजा पाने का काम ही न करे तो कभी किसी को जल्लाद न बनना पड़े .--------------ये हमारे ही पाप कर्मों का उदय तो है जो उससे हमारे प्रति यह दुर्व्यवहार करबा रहा है ; उसे दुर्जन बना रहा है .--------क्यों हमें उसके लिए अफ़सोस नहीं होना चाहिए , जो हमसे दुर्व्यवहार कर रहा है ?-


एक द्रष्टिकोण यह भी 
क्यों हमें उसके लिए अफ़सोस नहीं होना चाहिए , जो हमसे दुर्व्यवहार कर रहा है ?
ये हमारे ही पाप कर्मों का उदय तो है जो उससे हमारे प्रति यह दुर्व्यवहार करबा रहा है ; उसे दुर्जन बना रहा है .
अपने पाप कर्मों के उदय में प्रतिकूलता भोगना यह हमारी नियति है और उसमें कोई न कोई तो निमित्त बनेगा ही , यहाँ उसे निमित्त बनना पड़ रहा है , क्या यह उसकी मजबूरी नहीं ?
अरे ! किसी को अपने कुकृत्य के लिए मौत की सजा पाने के लिए किसी न किसी को जल्लाद बनना पड़ता है ; यदि कोई मौत की सजा पाने का काम ही न करे तो कभी किसी को जल्लाद न बनना पड़े .
हम अपनी ओर तो देखते ही नहीं , बस दूसरों पर ही दोष डालते रहते हें .
क्या हमारे पाप कर्मों के उदय के बिना कोई हमारा कुछ भी बिगाड़ सकता है ?
हमें अफ़सोस हो तो इस बात का हो क़ि हमारे निमित्त से क्यों सामने वाले के ह्रदय में विकार की उत्पत्ति हुई ?
मैं क्यों उसके पाप का निमित्त बना .

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