Monday, March 11, 2013

पतन से यह दुनिया इतनी परेशान है , पतन रोकने में इतनी व्यस्त है कि उत्थान के बारे में सोचने की इसे फुर्सत ही नहीं है .

हम अपने पतन से व्यथित हें और उत्थान हमारी ख्वाहिस है ,पर इस बारे में हमारा सोच क्या है ? हमारे प्रयास क्या हें ?
हमें क्या करना होगा ?
पतन से यह दुनिया इतनी परेशान है , पतन रोकने में इतनी व्यस्त है कि उत्थान के बारे में सोचने की इसे फुर्सत ही नहीं है .
यूं शायद आप मेरी इस बात से सहमत न भी हों पर यदि हम अपने व्यवहार पर गौर करें तो पायेंगे की यह कितना बड़ा यथार्थ है .
यदि हम गौर करे तो पायेंगे कि सारी दुनिया में कितना उन्नत दंड विधान है , सूक्ष्म और विस्तृत .
अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस है , अपराध की जांच के लिए संस्थाएं हें , अपराध और दंड तय करने के लिए अदालतें हें , दंड देने के लिए जेलें हें और इन सब कामों के लिए खर्चे की व्यवस्था भी है .
कदम - कदम पर पुलिस तैनात है और गाँव - गाँव में अदालतें .
यह सब किसलिए ? पतन रोकने के लिए .
हम चाहते हें की अपराध न हों , कोई अपराध न करे , लोग अपराध करने से डरें .
अपराधों के लिए जैसा उन्नत दंडविधान है , अच्छे कामों को प्रोत्साहित और पुरुस्कृत करने के लिए परुस्कार की व्यवस्था उसका सौबां भाग भी नहीं है .
इसलिए मैं कहता हूँ कि हम उत्थान के प्रति उदासीन हें .
जैसे अपराधों पर नजर रखने के लिए पुलिस है वैसे हमारे अच्छे कामों पर नजर रखने के लिए कोई एजेंसी नहीं है , जैसे अपराधों की जांच करने के लिए अनेकों जासूसी संस्थाएं हें वैसे ही अच्छे कामों को रेखांकित करने के लिए कोई नहीं है , जैसे अपराध तय करने के लिए अदालतें हें बैसे अच्छे कामों को तय करने के लिए कौन बैठा है , कौन किसके लिए पुरूस्कार तय करता है और कौन पुरुस्कृत करता है ?
क्या इस बात पर गौर करने की जरूरत नहीं है , क्या इस बात की व्यवस्था करने की आवश्यकता नहीं है ?
यदि हमें उत्थान करना है तो उत्थान को प्रुस्क्रत करना होगा , सम्मानित करना होगा .
कौन करेगा यह ? और कब ?

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