Monday, March 18, 2013

पाँचों इन्द्रियाँ तो प्रतिपल अपनी मांगों का झंडा लहराती रहतीं हें , ये इस जीव को निरंतर व्यस्त रखती हें , ऐसे में इस आत्मा की स्वयं की सुध लेने वाला कौन है ?

हम बस संसार में ही रमे रहते हें , हमें अपने आत्मा की याद क्यों नहीं आती है ?
पाँचों इन्द्रियाँ तो प्रतिपल अपनी मांगों का झंडा लहराती रहतीं हें , ये इस जीव को निरंतर व्यस्त रखती हें , ऐसे में इस आत्मा की स्वयं की सुध लेने वाला कौन है ?
और बस यही एक उपेक्षित रह जाता है .
अरे ! कहाँ आत्मा का वह अतीन्द्रिय आनंद , अनंत आनंद जो अनंत काल तक बना रहेगा , सदा के लिए !
और कहाँ यह इन्द्रियों का क्षणिक सुखाभास ?
पल में भोजन मागता है और पल में ही ऊब जाता है .
नित्य नई मांग ?
किसकी और ध्यान देने की जरूरत है , कहाँ फायदा है विचार तो कर !
अपने २ घंटे में से कितना समय किसे देने की जरूरत है , निर्णय कर !
तेरा कल्याण होगा !

No comments:

Post a Comment