Sunday, October 18, 2015

परमात्म नीति - (66) - महानलोग प्रयोजन की सिद्धी के लिए कार्य करते हें, दिखावे के लिए नहीं

कल आपने पढ़ा -

"महानलोग प्रयोजन की सिद्धी के लिए कार्य करते हें, दिखावे के लिए नहीं "
अब आगे पढ़िए 
परमात्म नीति - (66)

by- परमात्म प्रकाश भारिल्ल



महानलोग प्रयोजन की सिद्धी के लिए कार्य करते हें, दिखावे के लिए नहीं  -


इसी आलेख से -

-महानलोग स्वतन्त्रवृत्ति के प्राणी होते हें गुलाम वृत्ति के नहीं.

सामान्यजन के विपरीत महानलोग अपने प्रयोजन की सिद्धि हेतु अपने प्रयत्नों में जुटे रहते हें, इस बात से वेखबर व वेपरवाह कि कोई उन्हें देख रहा है या नहीं.

महानलोगों की निष्ठा अपने कर्तव्य के प्रति होती है, वे यह बात अच्छी तरह जानते भी हें कि यदि वे अपने कर्तव्यपालन में सफल रहे तो उनकी परवाह अन्य लोग करेंगे, उन्हें किसी की परवाह करने की क्या आवश्यक्ता है?

सामान्य लोगों की निष्ठा घड़ी के प्रति होती है और महान लोगों की लक्ष्य के प्रति.

जो मात्र प्रतिदान के लिए कार्य करते हें वे मजदूर होते हें और जो उत्पादकता (productivity) के लिए कार्य करते हें वे मालिक. 


जो लोग स्वत:स्फूर्त (self inspired) प्रेरणा से कार्य करते हें वे मालिक बनते हें और जो दिखाबे के लिए कार्य करते हें वे गुलाम.

जगत की उत्पादकता (productivity) क्षमता से कम होने की एक बड़ी बजह यही है कि अधिकतम लोग मात्र दिखावे में ही व्यस्त रहते हें और निष्ठावान (sincere) कार्यकर्ता विरले (rare) ही हें.





महानलोग स्वतन्त्रवृत्ति के प्राणी होते हें गुलाम वृत्ति के नहीं.

गुलामवृत्ति के लोग किसी को दिखाने के लिए, किसी के देखने पर काम करते हें, उनके काम पर कोई नजर रखने वाला चाहिए.

सामान्यजन के विपरीत महानलोग अपने प्रयोजन की सिद्धि हेतु अपने प्रयत्नों में जुटे रहते हें, इस बात से वेखबर व वेपरवाह कि कोई उन्हें देख रहा है या नहीं.
कदाचित यदि कोई उन्हें देख रहा है तो यह उनके लिए व्यवधान हो सकता है. 

गुलामव्रत्ति वाले सामान्यजन की नजर उसकी ओर होती है जिसकी आधीनता उसने स्वीकार की है, अपने कर्तव्य के प्रति वह उतना सजग नहीं होता है.

महानलोगों की निष्ठा अपने कर्तव्य के प्रति होती है, वे यह बात अच्छी तरह जानते भी हें कि यदि वे अपने कर्तव्यपालन में सफल रहे तो उनकी परवाह अन्य लोग करेंगे, उन्हें किसी की परवाह करने की क्या आवश्यक्ता है?

सामान्य लोगों की निष्ठा घड़ी के प्रति होती है और महान लोगों की लक्ष्य के प्रति.
सामान्यलोग घड़ी देखकर कार्य करते हें व वक्त होजाने पर रुक जाते हें चाहे प्रयोजन की सिद्धी हो या न हो. 
महानलोग घड़ी देखकर नहीं लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य करते हें. 
बस इसीलिये सामान्यलोग सिर्फ वक्त काटते हें और महानलोग अपने प्रयोजन की सिद्धी में सफल होते हें.

इसी तरह सामान्यजन मात्र प्रतिदान के लिए कार्य करते हें, उनकी निगाह लक्ष्य (उत्पाद,product) पर नहीं मात्र अपने वेतन पर होती है.
महानलोग प्रतिदान की परवाह नहीं करते हें, वे उत्पादकता के लिए कार्य करते हें, वे यह तो जानते ही हें कि प्रतिदान तो मिलना ही है उसकी क्या परवाह करनी.

दिखाने के लिए काम करने वालों को सीमित प्राप्ति होती है व लक्ष्य के लिए कार्य करने वालों को असीमित.

जो मात्र प्रतिदान के लिए कार्य करते हें वे मजदूर होते हें और जो उत्पादकता (productivity) के लिए कार्य करते हें वे मालिक.

कहा भी है न कि -
"जगती वणिक वृत्ति है रखती, उसे चाहती जिससे चखती, काम नहीं परिणाम निरखती--------"


जगत की उत्पादकता (productivity) क्षमता से कम होने की एक बड़ी बजह यही है कि अधिकतम लोग मात्र दिखावे में ही व्यस्त रहते हें और निष्ठावान (sincere) कार्यकर्ता विरले (rare) ही हें. इस कारण हमें एक ही काम के लिए दो लोगों की आवश्यक्ता पड़ती है, एक काम करने वाला और दूसरा नजर रखने वाला. 

जो लोग स्वत:स्फूर्त (self inspired) प्रेरणा से कार्य करते हें वे 
स्वामीभाव वाले होते हें. वे मालिक बनते हें और जो दिखाबे के लिए कार्य करते हें वे गुलाम  वृत्ति वाले गुलाममार्गी होते हें 

प्रथम प्रकार के लोग भले ही किसी के लिए कार्य करते हों पर स्वामीव्रत्ति वाले होने से स्वामी के सामान ही सम्मान और व्यवहार पाते 
है.
दूसरे प्रकार के लोग किसी की नौकरी न भी करें (ऐसे लोगों को अपने
यहाँ रखेगा भी कौन ?) तब भी गुलाम वृत्ति वाला होने से गुलाम ही है.

यहाँ इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन नियोक्ता (employer) है और कौन कर्मचारी (employee). यह फर्क तो वृत्ति का है.








आगे पढ़िए -

"महानलोगों की द्रष्टि मात्र अपने लक्ष्य पर होती है "
कल 


 

----------------
उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

 



- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

No comments:

Post a Comment