jaipur , wednesday, sept 30 -2015 , 6 am
इस रचना का सन्दर्भ -
सकारात्मकता (positiveness) हकीकतों से रूबरू होने में (face करने में) है, उनका सामना करने में है, उनसे मुंह चुराने और भागने में नहीं.
नकारात्मकता से बचने के नाम पर लोग जीवन की हकीकतों से इसतरह दूर भागना चाहते हें मानो शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन झुकाकर आँख मूंदलेने मात्र से खतरा टलजाने का भ्रम पालना चाहते हों.
मैं हकीकतों की ओर से आँख मूंदने की जगह कुरेद-कुरेदकर हकीकतों को उजागर करना चाहता हूँ, उन्हें पढ़ना चाहता हूँ, उनसे निपटने के लिए अपनेआपको सज्ज (equipped) करना चाहता हूँ और जमाने को भी आगाह (warn) करना चाहता हूँ. जिन्हें इससे परहेज है उनकी तथाकथित सकारात्मकता उन्हें मुबारक !
कपाल पर
चांदनी तो पहिले ही बिखर गई थी
अबतो चाँद दिखाई देने लगा है
ईद भी आसपास ही होगी यहींकहीं
मुझको अहसास होने लगा है
भाल अनुभवों की इबारतों से गुदगया है
फिरभी प्रतिपल अनुभव एक नया है
सीखा हुआ कुछभी काम नहीं आरहा है
ये वक्त कितनी तेजी से बदलता जारहा है
अक्स अपना निहारता हूँ
तो खुदको ही नहीं सुहाता हूँ मैं
ये आइना भी अब बदल गया है
देखो ना कैसा नजर आता हूँ मैं
आइना जो कभी मेरा जूनून था
आज उसीसे कतराता हूँ मैं
हकीकतें करदेता है बेपर्द ये जालिम
इसलिए उससे दुश्मनी निभाता हूँ मैं
गाना भी मैंने अब छोड़ दिया है
अब सिर्फ गुनगुनाता हूँ मैं
लोग सुनते थे तो हंसाकरते थे
अब सिर्फ मुस्कुराता हूँ मैं
मैं कितना ही तेज क्यों न दौडूँ
पीछे छूट ही जाता हूँ
अबतो मुझपर हंसने भी लगे हैं लोग
भरी भीड़ में वेचारा सा नजर आता हूँ
कभी न थकने वाला दिल भी
अबतो थकने लगा है
डाक्टर बाबू कह रहे थे कि
हार्ट अटकने लगा है
आसपास देखता हूँ
तो बहुत दूर का दिखाई देता है
गल्तियां सबकी नजर आती हैं
पर मेरा चेतावनी का स्वर किसको सुनाई देता है
अनुभवों का लाभ किसको दूँ
कोई नजर नहीं आता है
सत्य तो यह है
वक्त ही सबको सिखाता है
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