Sunday, October 4, 2015

मेरी कल्पना -
एक मुमुक्षु का आदर्श अंतिम सन्देश -
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

इसी कविता का एक पद -

"अब हम चले निजलोक में 

संसार में अब ना भ्रमेंगे


तुम हमें अब भूल जाओ


मोक्ष में अब हम मिलेंगे "


अनादि से तो चल रहा है
संसार का ये सिलसिला 
जन्म, जीवन, म्रत्यु मिलकर
बन पड़ा यह क़ाफ़िला

बिछुड़ गए कई बार मिलकर 
फ़िरसे मिले, फिरसे जुदा
ये सिलसिले चलते रहे
तुम कहो हमको क्या मिला

सुध आई हमको आत्मा की 
स्वरूप का निर्णय हुआ
मैं एक हूँ परिपूर्ण निज में 
कोई मेरा कब हुआ 

यह जानकर, निर्धार कर 
निज रूप में स्थित हुआ
कोई आऐ, कोई जाऐ
अबतक यही सब कुछ हुआ

ओ लोक के सब लोग सुनलो
अब भूल जाओ सब गिले 
आधि व्याधि उपाधि तजकर
इस देह से अब हम चले

अब हम चले निजलोक में 
संसार में अब ना भ्रमेंगे
तुम हमें अब भूल जाओ
मोक्ष में अब हम मिलेंगे 

मुक्ति को अब कूच मेरा
स्वरूप में अावास होगा 
लोकाग्र में होकर अवस्थित 
सिद्धों से सहवास होगा

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