Saturday, March 9, 2013

शासन , समाज और परिवार सब हमारे अपने हें , हमारे लिए हें .

अपने अपनों से , परिजनों से व्यवहार के तौरतरीके और पैमाने भिन्न होते हें , वे समाज या क़ानून द्वारा स्थापित पैमानों से नहीं व्यक्तिगत भावनाओं से संचालित होते हें , परिजनों से व्यवहार गणित की भाषा नहीं समझता है और न ही "जैसे को तैसा" की उक्ति से संचालित होता है , परिवार की अवधारणा स्नेह , आत्मीयता , उदारता , त्याग और समर्पण की भावना पर आधारित होती है .
कहीं हम भूल से परिवार को मुहल्ले में तो नहीं बदल डालते हें ?
अपनों से गैरों सा व्यवहार तो नहीं करने लगते , उन्हें खो तो नहीं देते ?
इतनी बड़ी और निष्ठुर दुनिया में अपने आखिर हें ही कितने ?
शासन , समाज और परिवार सब हमारे अपने हें , हमारे लिए हें .
क्या फर्क है तीनों में ?
शासन का क़ानून अंधा , कठोर और निष्ठुर होता है , जिसमें भावना , परस्थिति और व्यक्ति विशेष का कोई considration नहीं .
क़ानून गणित की भाषा में काम करता है जहां दो और दो चार होते हें , बस , न तो पांच और न तीन ; शून्य और सौ का तो प्रश्न ही नहीं उठता .
कोई व्यक्ति एक बार अपराध करे ( फिर चाहे वह कोई भी क्यों न हो और उसकी परिस्थिति कुछ भी क्यों न हो ) , क़ानून उसे १० साल के लिए जेल भेज देता है और उसका काम पूरा हुआ .
अब क़ानून यह नहीं सोचने को बैठेगा कि उसने चोरी इसलिए की कि उसे अपनी मरती हुई बीमार माँ के इलाज के लिए तत्काल पैसे की सख्त जरूरत थी और उसे दूसरा कोई उपाय नहीं सूझा , या अब उसे जेल भेज देने से उसके छोटे-छोटे बच्चों का क्या होगा , या अब वह विल्कुल बदल गया है , संत बन गया है और अब दुबारा अपराध दोहराने की कोई संभावना नहीं है , अब उसे जेल में रखने का अर्थ है उसका ब़ोझ सरकार के ऊपर और उसके परिवार का बोझ समाज के ऊपर .
इसलिए कहते हें कि क़ानून अंधा होता है .
समाज गणित की भाषा में नहीं चलता है , उसका कोई लिखित क़ानून भी नहीं होता . समाज कोमन सेन्स से चलता है , भावनाओं से संचालित होता है , अनेकों फेक्टर्स को ध्यान में रखकर निर्णय करता है .
समाज का न तो क़ानून परिभाषित होता है और न ही दंड . समाज में कुछ भी अपरिवर्तनशील भी नहीं होता है .
हो न हो किसी जघन्यतम व्यवहार पर अभी किसी की जघन्यतम प्रताड़ना करे और दुसरे ही उसके किसी महान योगदान के लिए उसे सर पर बिठाले .
समाज व्यक्ति की वर्तमान स्थिति पर नजर रखता है , उसका संज्ञान लेता है तदनुसार व्यवहार करता है .
बस किसी व्यक्ति के बारे में समाज की धारणा ही उसका दंड या पुरूस्कार है .
और परिवार ?
परिवार का हाथ तो प्रतिपल व्यक्ति की नाडी पर होता है और वह उसकी प्रतिपल की धड़कन पर नजर रखता है और तदनुसार व्यवहार करता है .
परिवार में अपराध मात्र अपराध नहीं होता , वह भूल , गलती और अपराध में फर्क करता है .
परिवार सिर्फ घटना पर ही ध्यान नहीं देता , उसकी परिस्थिति और मनस्थिति पर भी विचार करता है .
परिवार दण्डित करने का नहीं भूल सुधार का इक्क्षुक होता है .
परिवार की भाषा कठोर नहीं संवेदनशील होती है .
परिवार के व्यवहार में तोल-मोल नहीं होता , यहाँ उदारता , त्याग और समर्पण की भावना से काम लिया जाता है .
परिवार में किसी को कुछ साबित करने की और प्रमाण पेश करने की जरूरत नहीं होती यहाँ सिर्फ जानकारी का आदान - प्रदान होता है , लोग सहज ही एक दुसरे की बात पर और उसके इरादों पर भरोसा करते हें उसकी सदभावनाओं के पार्टी आश्वस्त रहते हें .
परिवार के लोग बिना किसी आशा , अपेक्षा या बहानेबाजी के एक दुसरे के प्रति अनुकूलता बरतने का प्रयास करते हें .
परिवार के लोग किसी सदस्य का बड़े से बड़ा अपराध भी भविष्य में अपराध न दोहराए जाने के क्षीण से आश्वासन पर गौण कर देते हें .
परिवार के लोग उस मनस्थिति और परिस्थिति को बदने में जुट जाते हें जिनके चलते किसी से कोई भूल हो गई है .
इस पर भी अगर कुछ न बदले तब भी परिजन उस व्यक्ति के साथ यथायोग्य तरीके से इस तरह जीवन भर निभाते हें कि वह बेहतरतम संभव तरीके से जीवन जी सके .
हमें सावधान रहना होगा कि कभी हम भूल से किसी परिजन के साथ समाज या क़ानून सा निष्टुर व्यवहार तो नहीं कर बैठते हें ?

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