Saturday, April 27, 2013

अरे भूले भगवान् ! अपनी परिणति को तौलो , टटोलो !

इन्हें देखकर तो लगता है कि ये तो उनके बड़प्पन के बोझ तले दबे जा रहे हें , उन्हें आशीर्बाद देकर अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहे हें या उनके प्रति मोहपाश में बंधे हुए हें . ये सभी भाव तो साधुता के घातक हें -

और तो और , जब मैं इन संतों को किसी को आशीर्वाद देने के लिए भी ग्रद्ध्तापूर्वक लालायित देखता हूँ तब भी मैं विचलित हो जाता हूँ .
ये कौन ? बो कौन ?
सन्तन कहा सीकरी सों काम है ?
(संतों को सीकरी (उन दिनों देश की राजधानी हुआ करती थी) से क्या काम है , क्या लेना - देना है ?)
और फिर किस बात का आशीर्वाद ?
लौकिक कामनाओं की पूर्ति का ?
उन्हें तो व्यर्थ जानकर,छोड़कर साधु बने हें , फिर दूसरों को कैसे कीचड में धकेलने की कामना हो सकती है ?
तो फिर धर्म वृद्धि का ?
वह तो इस तरह नहीं दिया जाता है .
अरे भूले भगवान् ! अपनी परिणति को तौलो , टटोलो !

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