उनके दुर्भाग्य की तो हम महिमा ही क्या कहें जो अपने निकटतम और प्रियतम लोगों को ही अपना शत्रु बना लेते हें -
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
उनके दुर्भाग्य की तो हम महिमा ही क्या कहें जो अपने निकटतम और प्रियतम लोगों को ही अपना शत्रु बना लेते हें , उनकी रक्षा ( मदद) तो भगवान् भी नहीं कर सकते हें .
यह दुनिया भले ही अरबों मनुष्यों से भरी पडी है पर यहाँ तेरे अपने कितने हें ?
वे कोई भी क्यों न हों , वे एक - एक ही तो हें .
माता-पिता , भाई-बहिन , पति-पत्नि , पुत्र-पुत्री , मित्र आदि .
ये सभी एक हें , अनोखे हें , इनका कोई replacement नहीं है , तेरे लिए तो यही पूरी दुनिया है , इनमें से एक को खो देने का मतलब है एक बड़ा भाग खो देना .
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