Thursday, August 13, 2015

- परमात्म नीति (23) - तू क्या क्रंदन करता है? तेरा क्या खो गया है?

- परमात्म नीति (23)

- तू क्या क्रंदन करता है? तेरा क्या खो गया है?







- तू क्या क्रंदन करता है? तेरा क्या खो गया है?
तेरे पास था ही क्या? तू है कौन, तेरी औकात ही क्या है?
बड़े-बड़े सम्राट और राजा लोग अपना सर्वस्व झोंककर, जान की बाजी लगाकर जो कुछ भी अर्जित करते हें उसे कोई अन्य आक्रान्ता (offender) आकर क्षण भर में छीन लेता है. वह मात्र धन का ही नहीं स्वतंत्रता और स्वाभिमान का भी हरण करता है. 
वह तो उन्हें निवृत भी नहीं होने देता वरन आधीन बनाकर रखता है, प्रतिपल, कदम-कदम पर अपमानित करता है, आदेश देता है.
अन्यों से लडबाता है.


जो कल तक अपने लिए लड़ता था उसे अब दुसरे के (उसके) लिए लड़ना पड़ता है.
कल तक जब बे विजयी होते थे, तो उनकी स्वयं की जयजयकार होती थी, आज जब बे विजयी होते हें तब उन्हें स्वयं भी उनकी जयजयकार करनी पड़ती है जिनके आधीन आज बे हें.
यह तो संसार का स्वरूप है, तू इस संसार में है तो तू इस दशा से भिन्न कैसे हो सकता है?
कल तक जो देश के भाग्यविधाता थे आज वे अपने ही भाग्य को कोस रहे हें और जो कल तक विवश थे आज बे भाग्यबिधाता बन गए हें.
कल तक जिनकी मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था आज उनकी मर्जी से पत्ता तक नहीं हिलता है और दूसरों की मर्जी मात्र से वे स्वयं हिल जाने को मजबूर हें.
ये तो वक्त के तेबर हें, इन्हें समझने की आवश्यक्ता है.



उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 

यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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