Tuesday, August 18, 2015

परमात्म नीति - (27) - सल्लेखना - यह अनागत को आमंत्रण नहीं, आगत का स्वागत है.

- परमात्म नीति - (27)

सल्लेखना -  यह अनागत को आमंत्रण नहीं, आगत का स्वागत है.







यह तो जीवन की कला है, म्रत्यु को आमंत्रण नहीं.


सल्लेखना व्यामोह का अभाव है, भय का अभाव है, चाहत का 

अभाव है, म्रत्यु की चाहत नहीं.


यह अनागत को आमंत्रण नहीं, आगत का स्वागत है.



यह ऐसी व्रत्ति का नाम है कि – “चाहे लाखों बर्षों तक जीवूं या 

म्रत्यु आज ही आजाबे”  




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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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