Monday, August 17, 2015

परमात्म नीति - (26) - यह न तो म्रत्यु को आमंत्रण है और न ही जीवन के प्रति व्यामोह, सल्लेखना वीतरागी वृत्ति है.

परमात्म नीति - (26)

- यह न तो म्रत्यु को आमंत्रण है और न ही जीवन के प्रति व्यामोह, सल्लेखना वीतरागी वृत्ति है.





यह न तो म्रत्यु को आमंत्रण है और न ही जीवन के प्रति व्यामोह, सल्लेखना वीतरागी वृत्ति है.
जन्म पाना, जीवित रहना और म्रत्यु हमारे हाथ में (आधीन) नहीं.
हम मात्र व्यामोह करते हें व व्यामोह का त्याग हम कर सकते हें, बस उसी व्यामोह के भाव के अभाव का नाम ही सल्लेखना है.
यह सर्वोत्कृष्ट धर्म है. 
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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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