“यदि
देश के लिए प्राणों की आहूति "लेने और देने" वाले लाखों देशभक्त सेनानियों के वलिदान
का महिमामंडन “शहादत” बतलाकर किया जाता है तो सल्लेखनापूर्वक जीने और
सल्लेखनापूर्वक ही वीतराग परिणामों के साथ देहत्याग होजाने की प्रक्रिया को
आत्मघात जैसा अधम नाम कैसे दिया जासकता है?”
-
बाहरे
माननीय न्यायालय!
कमाल
कर दिया!
सबसे
बड़ी साधना (धर्म) सल्लेखना को सबसे बड़ा पाप (“आत्मघाती महापापी”) घोषित करडाला!
धर्म
को अपराध घोषित कर डाला!
ऐसा
करने से पहिले ज़रा विचार तो किया होता कि इस देश और इस संसार में किस प्रकार एक
समुदाय के लोग किस प्रकार हजारों साल पूर्व घटित एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना का मातम
मनाते हुए नगरों के बाजारों में खुलेआम अपनी छाती पीटकर अपनेआपको लहूलुहान तक कर
लेते हें और उनकी इस धार्मिक आस्था व परम्परा का सम्मान करते हुए कभी किसीने उसपर
एक शब्द तक नहीं कहा, उसपर अंगुली नहीं उठाई.
आखिर
ऐसा हो भी क्यों?
धर्म
पारमार्थिक मार्ग है और ये न्यायालय इस संसार के संचालन की व्यवस्था. यदि धर्म और धार्मिक क्रियाओं का
मर्म माननीय न्यायलय की समझ से परे है तो यह उनकी अपनी समस्या है पर अपनी इस
समस्या को किसी महान साधक की पारमार्थिक धर्मसाधना पर घोरसंकट बनाकर थोपने से पहिले
यह न्याय का आसन कम्पायमान क्यों न हुआ?
क्या
यह उचित नहीं होगा कि धर्म और धार्मिक परम्पराओं पर धर्मभावना पूर्वक ही विचार
किया जाए?
यदि
देश के लिए प्राणों की आहूति लेने और देने वाले लाखों देशभक्त सेनानियों के वलिदान
का महिमामंडन “शहादत” बतलाकर किया जाता है तो सल्लेखनापूर्वक जीने और
सल्लेखनापूर्वक ही वीतराग परिणामों के साथ देहत्याग होजाने की प्रक्रिया को
आत्मघात जैसा अधम नाम कैसे दिया जासकता है?
इसी बिषय पर लेखक के दो अन्य लेख पढने के लिए क्रप्या निम्न लिंक पर क्लिक करें -
1.
http://parmatmprakashbharill.blogspot.in/2015/08/blog-post_15.html
2.
http://parmatmprakashbharill.blogspot.in/2015/08/blog-post_16.html
http://parmatmprakashbharill.blogspot.in/2015/08/blog-post_15.html
2.
http://parmatmprakashbharill.blogspot.in/2015/08/blog-post_16.html
No comments:
Post a Comment