Wednesday, August 19, 2015

परमात्म नीति - (28) - अरे भोले! उत्कृष्टतम जीवनशैली सल्लेखना को मात्र म्रत्यु से जोड़कर देखना और आत्महत्या करार देना तेरी बुद्धी का दिवालियापन नहीं तो और क्या है?


- परमात्म नीति - (28)



- अरे भोले! उत्कृष्टतम जीवनशैली सल्लेखना को मात्र म्रत्यु से जोड़कर देखना और आत्महत्या करार देना तेरी बुद्धी का दिवालियापन नहीं तो और क्या है?




अरे! दुनिया के सभी प्राणी तो हर कीमत पर जीवित रहना चाहते हें और मृत्यु से डरते हें, पर जिसे जीवन का ही मोह न रहा उसे भला म्रत्यु से मोह कैसे होगा, म्रत्यु की आकांक्षा कैसे होगी?

लोग सल्लेखना के बिना जीते भी है और सल्लेखनाविहीन मौत भी होती ही है, पर न तो तो जीवन सल्लेखना का विरोधी है और न ही सल्लेखना मृत्यु का नाम है.

सल्लेखना तो इक्षाओं के परिसीमन का नाम है, मोह की मन्दता के फलस्वरूप संयोगों के प्रति ग्रद्ध्ता की मन्दता का नाम सल्लेखना है.

सल्लेखना व्रतधारी को न तो जीवन के प्रति मोह ही होता है और न ही म्रत्यु की आकांक्षा, म्रत्यु का आग्रह.


अरे भोले! उत्कृष्टतम जीवनशैली सल्लेखना को मात्र म्रत्यु से जोड़कर देखना और आत्महत्या करार देना तेरी बुद्धी का दिवालियापन नहीं तो और क्या है?

अरे नादान! यह दूसरों के अन्दर ताकाझांकी की हीन चौर्यवृत्ति छोड़ और अपने अन्तर को निहार! तेरा कल्याण होगा.


अरे अभागे! यदि अब भी तुझे अपने लिए हितकारी यह बात 

समझ में नहीं आती है तो तेरे दुर्भाग्य की महिमा हम क्या कहें!


----------------
उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

No comments:

Post a Comment