Saturday, August 22, 2015

- परमात्म नीति – (32) - सल्लेखना एक तपश्चर्या है, साधना है.

इसी आलेख से -
यदि यात्रा के दौरान हम खुद घोषणा करते फिरें कि हमारे पास हीरों की पुड़िया है तो हमें लुटने से कौन बचा सकता है तबतो लुटेरे तो उसे लूटेंगे ही न! यदि तुझे लुटने से बचना है तो किसी को भनक भी मत लगने दे कि तेरे पास कुछ है. इस जीवन यात्रा के बारे में भी यही बात सही है, यदि तू अपनी तप/त्याग सम्पदा का इस तरह से प्रदर्शन करेगा तो जगतजन उसमें विघ्न डालने से चूकेंगे नहीं.

परमात्म नीति – (32)
सल्लेखना एक तपश्चर्या है, साधना है.






साधना नितान्त व्यक्तिगत क्रिया है जो गुप्त रूप से एकांत में की जाती है, यह न तो प्रदर्शन की वस्तु है और न ही सामूहिकरूप से की जाने वाली क्रिया.
तपश्चर्या और साधना का प्रतिफल आत्मोत्थान है, आत्मप्रचार या आत्मश्लाघा नहीं.
हमने साधना को प्रचार और आत्मप्रसिद्धी का साधन बनाकर उसका बाजारीकरण कर दिया है.
यदि यात्रा के दौरान हम खुद घोषणा करते फिरें कि हमारे पास हीरों की पुड़िया है तो हमें लुटने से कौन बचा सकता है तबतो लुटेरे तो उसे लूटेंगे ही न! यदि तुझे लुटने से बचना है तो किसी को भनक भी मत लगने दे कि तेरे पास कुछ है. इस जीवन यात्रा के बारे में भी यही बात सही है, यदि तू अपनी तप/त्याग सम्पदा का इस तरह से प्रदर्शन करेगा तो जगतजन उसमें विघ्न डालने से चूकेंगे नहीं.
यदि साधक स्वयं ही साधना का सही स्वरूप नहीं समझे तो हम कैसे आशा करेंकि न्यायालय या अन्य लोग इसे सही मायनों में समझ सकेंगे?
आज हमारे समक्ष उपस्थित संकट का एक बड़ा कारण यह भी है कि हमने अपनी इस अन्तरंग निधि का ढिंढोरा बहुत पीटा.
यदि हमें अपने ऊपर आया यह संकट दूर करना है तो हमें स्वयं भी बदलना होगा. हमें साधना के स्वरूप में आई इसप्रकार की विक्रतियों को दूर करना होगा.

संकटों को अवसर (opportunity) में बदलने कला में दक्ष हम सभी लोगों को इस संकट का उपयोग भी अपने अन्दर घर कर गईं विक्रतियों को दूर करने में करना होगा. हमें धर्म का सही स्वरूप समझना होगा, सच्चे अर्थों में उसे अपने जीवन में धारण करना होगा, तो हमारा कल्याण होगा.  

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उक्त सूक्तियां मात्र सूचिपत्र हें, प्रत्येक वाक्य पर विस्तृत विवेचन अपेक्षित है, यथासमय, यथासंभव करने का प्रयास करूंगा.

घोषणा 


यहाँ वर्णित ये विचार मेरे अपने मौलिक विचार हें जो कि मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित हें.
मैं इस बात का दावा तो कर नहीं सकता हूँ कि ये विचार अब तक किसी और को आये ही नहीं होंगे या किसी ने इन्हें व्यक्त ही नहीं किया होगा, क्योंकि जीवन तो सभी जीते हें और सभी को इसी प्रकार के अनुभव भी होते ही हें, तथापि मेरे इन विचारों का श्रोत मेरा स्वयं का अनुभव ही है.

यह क्रम जारी रहेगा. 

- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

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